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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ के मशीनों में मेग्नेटिक फिल्ड बनाए रखने के लिये हेलियम (Helium) गेस का उपयोग होता है, यह वजह से एम.आर.आई. मशीन को वातानुकूलित रखना पडता है।।
एम.आर.आई. भी सी. टी. स्केन की तरह मस्तिष्क, करोडरज्जु, पेट के अवयव, किड़नी, फेफडें, हृदय और स्नायु जैसे विविध अंगों की ध्यानपूर्वक विस्तृत जानकारी के लिये उपयोग में लिया जा सकता है । मरीझ के जिस हिस्से की जांच करनी है उसे मशीन के मध्यभाग में रखकर मरीज को सुलाया जाता है । यहां एक्स-रे का उपयोग नहीं किया जाता है लेकिन रेडियोतरंग और तीव्र चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग होता है, जिससे रेडिएशन का डर नहीं रहता। शरीर में अधिक मात्रा में पानी के हाइड्रोजन प्रोटोन्स होते है ("H" of H2O)। एम.आर.आई. के सिद्धांत अनुसार रेडियोतरंग और चुंबकीय क्षेत्र की सहाय से यह प्रोटोन्स उत्तेजित होते है और ग्रेडियन्ट्स (Gradients) की सहाय से उसे प्रस्थापित स्थिति में लाया जाता है।
प्रत्येक कोषिका में रहे विभिन्न प्रोटोन की संख्या और रेडियो सिग्नल के आधार पर कम्प्यूटर की आधुनिक गिनती की सहाय से उसे अत्यंत चीवटपूर्वक अलग किया जाता है । उसे लेसर के मेरा की सहाय से १४” x १७” की फोटो फिल्म पर प्रत्येक कोने से छबी खींची जा सकती है। यह वजह से मस्तिष्क के व्हाइट मेटर और ग्रे-मेटर सरलता से अलग कर सकते है । एक फोटो प्लेट में लगभग १६ से २० छबी आती है और पूरे एम.आर.आई. दौरान ऐसे ४ से ५ सिक्वन्स लिये जाते है । प्रत्येक सिक्वन्स ५ से ८ मिनट तक चलता है । इस प्रकार ३० से ४५ मिनट में मस्तिष्क के विभिन्न कोने से (x,y,z आधार) ८० से १०० छबी खींची जाती है, जिसके आधार पर तजज्ञ रेडियोलोजिस्ट अर्थघटन करके रिपोर्ट देते है । आधुनिक चिकित्साशास्त्र में मरीजों के लिए यह एक अद्भुत भेंट कही जा सकती है।
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