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मस्तिष्क की रेडियोलोजी की जाँच
(Neuroradiology)
सामान्यतः मस्तिष्क या अन्य रोगों का इलाज डॉक्टर मरीज के बाहरी अवलोकन, रोग के चिह्न और पूछताछ आदि द्वारा करते हैं । कभी रोग के कारणों को जानने के लिए शरीर के अंदर कैसी, कहाँ
और कितनी तकलीफ है यह समझना जरूरी हो जाता है । उस वक्त रेडियोलोजी-न्यूरोरेडियोलोजी का उपयोग किया जाता है, जिसमें स्क्रीनिंग, एक्स-रे, सोनोग्राफी, सी.टी.स्केन और एम.आर.आई. आदि का उपयोग होता है। • एक्स-रे (क्ष-किरणे) :
शरीर के अंदर झांकने वाली इन एक्स-रे (क्ष-किरणें) "चमत्कारी किरणों' का संशोधन १८९५ में जर्मनी के मि. रोन्टजन ने किया था। उसके बाद चिकित्साक्षेत्र में इन किरणों का अधिक से अधिक कल्पनाशील तरीके से उपयोग होता रहा है, जो मानवजीवन के लिए एक महान आशीर्वाद सिद्ध हुआ है ।।
सूर्यप्रकाश, क्ष-किरणें, माईक्रोवेव और रेडियोतरंग ये सभी वैज्ञानिक दृष्टि से विद्युतचुम्बकीय तरंग हैं । उसमें फर्क मात्र इन तरंगों में रहने वाली शक्ति का है । रेडियो और टेलिविजन की तरंगों में अधिक शक्ति नहीं होती, इसलिए अपने चारों ओर असंख्य तरंग प्रसारित होने के बावजूद भी हम जीवन जी सकते हैं । क्ष-किरणों की ऊर्जा प्रकाश से १०-१५ हजार गुना अधिक है। अत: वह वस्तु के आरपार जा सकती है। प्रकृति का ये करिश्मा है कि हमारी आँखों को केवल सूर्यप्रकाश ही दिखता है। सामान्य एक्स-रे की मदद से मस्तिष्क के बाह्य आवरण का एक परिमाणिय चित्र प्राप्त होता है, जिससे किसी चीज की गहराई कितनी है यह नहीं जान सकते । उदाहरण, मस्तिष्क के अंदर गांठ हो तो वह निश्चित किस जगह है और कितनी गहराई में है, यह कहा नहीं जा सकता।
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