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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ किसी भी ध्यान पद्धति में एकाद चीज पर केन्द्रित होना होता है - चाहे वो श्वास हो, चाहे विचार हो, चाहे शब्द हो, चाहे कोई . दर्शनीय चीज (छवी, मूर्ति आदि) हो, या फिर कोई आनंदप्रद स्मृति या कल्पना हो । शांत चित्त, समताभरा चित और सजगताभरा चित्त ये तीनों आवश्यक है कोई भी ध्यान की सफलता हेतु । ऐसे चित्त से देखना और जानना-ध्यान है। स्वयं की शारीरिक तथा मानसिक प्रकृति और स्वयं के आत्मिक विकास को लक्ष्य में रखकर खुद को जो योग्य लगे वह ध्यान का नियमित अभ्यास करें। ध्यान, तनाव दूर करने की एक श्रेष्ठ औषधि माना जाता है। यह प्रतिदिन करना हितकारक और आवश्यक भी है । ध्यान तनावयुक्त परिस्थियों में विशेषतः करना चाहिए। प्रतिदिन तीस मिनिट ध्यान करने की सलाह दी
जाती है। (२) प्राणायाम : श्वासोच्छ्वास के व्यायाम (ब्रीधिंग एक्सरसाइज़),
तात्कालिक तनाव और कायमी तनाव के सामने रक्षण का श्रेष्ठ
और सरल उपाय माना जा सकता है। (३) व्यायाम : चलना, दौड़ना, एरोबिक व्यायाम, जिम्नेस्टिक,
योगासन, खेलना, तैरना इत्यादि योग्य मात्रा में नियमित करने से स्ट्रेस अवश्य ही कम हो सकता है। ऐसे व्यायाम का समय ५ मिनट से ४० मिनट तक बढ़ाया जा सकता है । हफ्ते में ४ से ५ दिन नियमित व्यायाम करना चाहिए। छोटा-छोटा व्यायाम तो कामकाज दौरान भी २-५ मिनिट के लिए किया जा सकता है, जैसे कि गर्दन घुमाना, हाथ और कलाई का व्यायाम, चहेरे का व्यायाम अथवा खडे होकर १-२ सीढियाँ चढ़ना-उतरना।
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