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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ
कारण :
यह बीमारी वंशानुगत नहीं है । शरीर की रक्षणात्मक इम्यून सिस्ट्म ( प्रतिकारतंत्र) में विक्षेप होने से स्नायुओं को नष्ट करने वाले कोष पैदा होते है, जो यह बीमारी का कारण है । यहाँ यह बताना आवश्यक है कि यह बीमारी संक्रमित नहीं है I
लक्षण :
१८ वर्ष के नजदीक की आयु में होती इस बीमारी के लक्षण, इसकी तीव्रता और बढ़ने की गति आदि में बहुत विविधता देखने को मिलती है । कुछ महीनों के अंतर्गत ही स्नायुओं में कमजोरी फैलती है । क्वचित यह बीमारी रूक जाती है, लेकिन अधिकतर मरीजो में अगर योग्य उपचार न किया जाए तो, कमजोरी क्रमशः बढ़ती ही जाती है । मरीज की चाल अस्थिर हो जाती है और वह बार बार गिर जाता है समय बीतने पर चलना बिल्कुल ही बंद हो जाता है और मरीज बिस्तरवश हो जाता है । शीघ्रता से बढ़ती हुई बीमारी में मरीज को ठीक होने की संभावना अधिक होती है। करीबन ५० % मरीजों में दवाई से सुधार हो सकता है ।
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इन मरीजों में स्नायुओं के दर्द से मुख्यतः सीढ़ी चढ़ने में या कुर्सी में से खडे होने में तकलीफ होती है । हाथ उपर करने में भी तकलीफ होती है । गरदन के स्नायुओंमें कमजोरी देखने को मिलती है । जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है, वैसे वैसे आहार, प्रवाही निगलने में और श्वास लेने में भी परेशानी होती है ।
निदान :
उपर्युक्त लक्षणों के साथ :
(१) रक्त में सी.पी. के. की बढ़ी हुई मात्रा
(२) मसल बायोप्सी में स्नायु के टुकड़े में देखने को मिलते निश्चित
बदलाव ।
(३) ई.एम.जी., एन.सी.वी. जैसी जाँच से बीमारी की चौकसाई होती है।
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