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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ सर्वाइकल स्पोन्डिलोसिस :
बढ़ती उम्र के साथ करोड़स्तंभ में घर्षण पैदा होता है और एक प्रकार की सूजन होती है । घर्षण की प्रतिक्रिया के सामने कुछ स्थानों पर अस्थि (हड्डी) बढ़ती है (osteophyte) और दो मणके के बीच की गद्दी में घिसाव आता हैं। उसका जिलेटीन मटिरियल गद्दी घिसने से बाहर निकलता हैं । वह समय जाने पर करोड़रज्जु पर दबाव डालता है और चिह्नसमूह पैदा करता है।
दबाव सीधा करोड़रज्जु पर हो तो उसे मायलोपथी कहते हैं । अधिकतर केसो में गर्दन की (सर्वाइकल) करोड़रज्जु पर दबाव होता है। CH-CE CA-CE; जिसे सर्वाइकल मायलोपथी कहते हैं । उसी तरह डोर्जल (पीठ) मायलोपथी हो सकती है ।
___दबाव चेता पर हो अर्थात् साईड में हो तो उसे रेडिक्युलोपथी कहते हैं, जिसमें संबंधित चेता पर जलन, झुनझुनी और दर्द होता है; साथ में वहाँ संवेदन कम हो सकता है (सेन्सरी रेडिक्युलोपथी) और उससे उत्तेजित होने वाले स्नायुओं की कार्यक्षमता कम होकर उतने स्नायु कमजोर हो जाते हैं (मोटर रेडिक्युलोपथी) । लम्बर (कमर) हिस्से में करोड़रज्जु नहीं होती, इसलिए चेता पर ही असर होती है। जैसे कि रेडिक्युलोपथी या कोडाइक्वाइना सिन्ड्रोम । अन्य कुछ केसो में गर्दन या करोड में अन्य जगह केवल दर्द ही होता है। यह दर्द बहुत पीड़ादायक होता है।
योग्य जाँच से इसका निदान और इलाज होता है । मुख्य टेस्ट एम.आर.आई. है। अधिकतर संपूर्ण करोड़ की ही एम.आर.आई. करनी पड़ती है, क्योंकि स्पोन्डिलोसिस एक साथ एक से अधिक स्थान पर होती है; जैसे कि सर्वाइकल (गर्दन) तथा लम्बर (कमर) स्पोन्डिलोसिस ।
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