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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ (२) खाद्य पदार्थ की एलर्जी, स्थल की उँचाई, वातावरण की
फेरबदल या नींद की शुरूआत न होनी जैसे बाह्य कारणों
से अनिद्रा होना। (३) शीफ्ट में काम करना, टाईमझोन में बदलाव या सोने
जागने की अनियमित पद्धति के कारण अनिद्रा होना । अनिद्रा के दुष्प्रभाव :
अगर अनिद्रा का उपद्रव लंबे समय तक चले तो नये संशोधन के मुताबिक मरीज को शारीरिक और मानसिक बहुत नुकसान हो सकता है। जैसे कि अतिचिंता, निरसता (डिप्रेशन), डायाबिटिस, स्थूलता, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग होना, मिर्गी के दौरे शुरू होना या बढ़ना, आत्महत्या की इच्छा होना या नशीली दवाई की आदत पड़ जाना । इसलिए अनिद्रा का सुआयोजित उपचार बहुत जरूरी है ।
अनिद्रा का उपचार :
सामान्यतः बीमारी या अन्य असामान्य संयोगो में अल्प समय के लिये मुख्य दवा के साथ उपशामक या निद्राप्रद दवाई उपचार के लिये दी जाती है। जिन मरीजों को निद्रा न आती हो या निद्रा में बाधा पहुँचती हो, तो उन्हें शीघ्रता से असर करे ऐसी निद्रा की दवाई उपयोगी साबित होती है (झोल्पीड़ेम, फ्लूराजेपाम, ट्रायोज़ेलाम) । जो मरीज लम्बे समय से अनिद्रा का शिकार हो उन्हें लम्बे समय तक निद्राप्रद उपशामक दवाई नहीं देनी चाहिए। परंतु अनिद्रा का कारण ढूंढ लेना चाहिए । इस प्रकार के मरीजों को सोने के समय के साथ दिनचर्या का भी सुआयोजन करना चाहिए, दिन में शारीरिक रूप से सक्रिय रहना
और सोने से तीन घण्टों पहले कुछ हलका सा व्यायाम श्रम करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए। तनाव से मुक्त रहना चाहिए ।
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