SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 11 - निद्रा-विकार और उपचार (Sleep Disorders) 131 अवस्था तक मर्यादित रहती है । कुछ निद्राप्रद-उद्दीपक रोगप्रतिकारक भी होते है। उनके रोगप्रतिकारक कार्य और निद्रा-जाग्रत अवस्था के बीच संबंध पाया गया है। रात को पीनीयल ग्रंथि में से मेलाटोनीन नामक तत्व का स्राव होता है । मेलाटोनीन के स्राव का आधार निद्रा के साथ नहीं होता क्यों कि रात को जाग्रत व्यक्ति में भी उसका स्राव होता है । प्रकाश में रेटिना की उत्तेजना के दौरान वह कम होता है। (मेलाटोनीन की वृद्धि निद्रा बढ़ाती है ।) हायपोक्रेटीन तत्त्व जागृक अवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण है। उसकी कमी से नार्कोलेप्सी और दिन में ज्यादा निद्रा की बिमारी होती है । Fra facare ( Sleep Disorders ) : (१) अयोग्य निद्रा-(Dyssomnias): अनिद्रा, अतिनिद्रा इत्यादि (२) विक्षिप्त निद्रावस्था या विकृत निद्रा की परिस्थिति (Parasomnias) (३) दैहिक / मानसिक रोगों के कारण होने वाले निद्रा के विकार (४) अन्य विकार (१) अनिद्रा (Insomnia) : अनिद्रा शब्द ही पूर्ण सुविधा होने पर भी गहरी निद्रा न आने की स्थिति निर्देशित करता है। इस तरह की अनिद्रा में नींद न आना, नींद की अवधि के पहले जाग जाना, बार-बार जागना या पर्याप्त और गहरी नींद न आए अथवा तो इन तीनों प्रकार की परिस्थिति का समावेश होता है । १५-२५ प्रतिशत वयस्क व्यक्तिओं में यह तकलीफ होती है । आश्चर्य और दुःख की बात है कि ज्यादातर लोग इस के उपचार के लिए सजाग नहीं है। इस अनिद्रा को नीचे बताये अनुसार तीन भागों में विभाजित कर सकते है : (१) मूलतः अनिद्रा होना, जिसमें डिप्रेशन, न्यूरोसिस, मानसिक कारणों या कोई बीमारी न हो फिर भी अधिक समय तक नींद न आना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001801
Book TitleMastishk aur Gyantantu ki Bimariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudhir V Shah
PublisherChetna Sudhir Shah
Publication Year2008
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Science, & Medical
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy