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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ ई.ई.जी. द्वारा जेकब-क्रुट्जफेल्ड्ट डिसीज तथा फन्टोटेम्पोरल डिमेन्शिया जैसे रोग के निदान में समर्थन मिलता है । सी. टी. स्केन, एम.आर.आई. उपरांत एम.आर.एन्जिओ, स्पेक्ट (SPECT), पेट (PET) जैसी न्यूरोईमेजिंग पद्धतियों
की भी निदान में कभी जरूरत पड़ती है। • नयें संशोधन :
आल्झइमर्स के कारणों और उपचार के लिये संशोधन हो रहे है। . औसतन ५% से १०% केसो में यह रोग वंशानुगत होता है। मरीज के १९ वे रंगसूत्र पर एपोलाइपोप्रोटीन ई-४ जनीन हो तो मरीज के वारिस को आल्झईमर्स होने की संभावना अधिक रहती है । मस्तिष्क के न्यूरोन्स में (कोषिकाओं में) न्यूरोफीब्रिलरी टेन्गल्स बनना, कोषिकाओं के बाहर बीटा एमायलोइड्स नामक प्रोटीन के प्लेक्स इकट्ठा होने से मस्तिष्क की नाजुक कोषिकाओं को हानि होना और सूजन होना इस रोग की एक पेथोलोजिकल प्रक्रिया है। परंतु यह किस कारण होता है ? अभी तक उसका उत्तर नही मिला है । संभावना है कि APOE नामक प्रोटीन और TAU नामक अन्य जैविक रसायन इन सभी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार हो सकते है । नये संशोधन इन सभी को रोकने की दवाई की खोज पर केन्द्रित हुए हैं ।
अल्झईमर्स के मरीजो में 'डानेपेझिल (Donep, Alzil, Aricep) नामक दवा असरकारक है। नई उपयोग होने वाली दवाई में रिवास्टिग्मिन (Rivamer) और उससे संबंधित अन्य दवाई का परिणाम बहुत अच्छा है। युरोप में गेलेन्टेमाइन (Galamer) अधिक प्रचलित है । भारत में मेमेन्टाइन (Admenta, Mentra) नामक दवाई उपलब्ध है । पहले ज्यादा मात्रा में प्रयोग में ली जाती टेक्रीन (कोग्नेक्ष) दवाई अपने दुष्प्रभाव की वजह से प्रयोग में कम हो गई है । स्टेटीन ग्रुप की दवाई (Atorvastatin इत्यादि) का उपयोग सामान्यतः रक्त की चरबी घटाने के लिये होता है। परंतु ये दवाई आल्झाइमर डिमेन्शिया में भी उपयोगी सिद्ध हुई है।
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