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9 - कंपवात (Parkinsonism) सर्जरी
खास चमत्कारिक बात तो नई सर्जरी की है । चालीस से भी अधिक वर्ष पहले पार्किन्सोनिझम सर्जरी की खोज हुई थी । लेकिन लिवोडोपा दवाई के आविष्कार से इस बीमारी में चमत्कारिक लाभ होने के कारण सर्जरी का योग्य विकास नहीं हो सका। लिवोडोपा दवाई के लंबे समय के प्रयोग बाद सतत दुष्प्रभाव के विषय में चिकित्सको को पता चलने से फिरसे पार्किन्सोनिझम संबंधित सर्जरी का विकास पिछले दस वर्षों में हुआ, और अब उसमें दिन-प्रतिदिन अनुभव बढ़ने के कारण सर्जरी सलामत और स्वीकार्य होती जा रही है। सर्जरी किस केस में कब करें, किस प्रकार की करें यह बात भी आजकल मेडिकल परिषद का महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन रही है जो प्रसन्नता की बात है । पार्किन्सोनिझम के केस में तीन प्रकार की सर्जरी हो सकती है । (१) एब्लेशन सर्जरी : इसमें पार्किन्सोनिझम होने के कारण मस्तिष्क
के कोषों की सरकिट में योग्य स्थान पर छिद्र या घाव (Ablation) किया जाता है । छिद्र करने हेतु स्टिरीओटेक्सी पद्धति का उपयोग किया जाता है । ऐसा छिद्र थेलेमस, पेलीडम या सबथेलेमिक न्युक्लियस में किया जाता हैं । उस अनुसार उसे थेलेमोटोमि, पेलिडोटोमि इत्यादि नाम दिये जाते है । मरीज युवान हो और जिनमें कंपकंपी जैसे लक्षण हो तो उनमें थेलोमोटोमी किया जाता है । लिवोडोपा दवाई के दुष्प्रभाव, जैसे कि डिस्काईनेजिया इत्यादि से छुटकारा पाने के लिए भी पेलीडोटोमी हो सकती है। इस सर्जरी से अपेक्षित परिणाम मिलता है लेकिन एकबार छिद्र किया गया भाग हमेशा छेदग्रस्त रह जाएगा, विशेष में कभी ओपरेशन के दौरान रक्त जमा होना (Hematoma), संक्रमण हो जाना इत्यादि विक्रिया भी हो सकती है । लेकिन इसका प्रमाण बहुत कम होना जरूरी है । इसका खर्च ३० से
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