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________________ 108 मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ और ट्राईवास्टाल इत्यादि दवा से काम चलाते हैं और अगर रोग दूसरी या तीसरी अवस्था में (शरीर में दोनों तरफ असर करे) हो तो लिवोडोपा देते है। जिससे मरीज दुष्प्रभाव के बिना लम्बा जीवन जी सकते है। नए संशोधन के मुताबिक डोपामीन एगोनीस्ट नामक दवाई अगर प्रारंभिक अवस्था में दी जाए तो रोग की आगे बढती हुई गति अवश्य थोडी मंद पड़ सकती है । चिकित्साकीय दृष्टि से यह रोग पांच अवस्था (stages) में विभाजित है। उदा. प्रथम अवस्था में शरीर के एक ही तरफ कंपन या कडकपन होता है जबकि अंतिम अवस्था में मरीज बिस्तरवश हो जाता है । किस अवस्था में मरीज को कौन सी दवाई देनी चाहिए वह न्यूरोफिजिशियन तय करते है । यहाँ यह स्पष्टता आवश्यक है कि किसी भी दो मरीज का उपचार हेतु एक ही प्रकार की दवाई का प्रयोग हों ऐसा निश्चित रूप से नहीं है। पिछले कई वर्षों में इस रोग के निर्मूलन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण संशोधन के कारण चिकित्सको तथा मरीजो में आशा की नई किरण प्रकट हुई है । प्रेमिप्रेक्षोल, रोपिनिरोल, टोलकेपोन, एन्टाकेपोन जैसी दवाई अत्यंत असरकारक और कम दुष्प्रभाववाली है, की जिससे मरीज को बहुत ही आराम मिलता है। वर्तमान में रोपिनिरोल (Ropark) प्रेमीपेक्षोल (Premirole, Remipax) और एन्टाकेपोन (Entacom, Adcapone) बाजार में उपलब्ध है । विदेशों में रासाजिलिन (ऐझिलक्ट) और रोटिगोटिन के स्कीन पेच भी असरकारक मालूम हुए है। विटामीन 'ई' तथा अन्य कई द्रव्यों के सेवन से भी इस रोग की मात्रा कम होती है ऐसा कई लोग मानते हैं, परंतु इस बात को अभी सर्वस्वीकृति नहीं मिली है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001801
Book TitleMastishk aur Gyantantu ki Bimariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudhir V Shah
PublisherChetna Sudhir Shah
Publication Year2008
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Science, & Medical
File Size17 MB
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