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________________ २८ . જૈન સાહિત્યના કાવ્ય પ્રકારો સ્વરૂપ અને સમીક્ષા चर्चरी छंद : आई रग्गण हत्थ काहल ताल दिज्जहु मज्भ्कआ, .. सद्द हार पलंत बिण्ण वि सव्वलोअहि बुज्आि । बे वि काहल हार पूरहु संख कंकण सोहणा, ___णाअराअ भणंत सुंदरि चच्चरी मणमोहणा ॥ १८४ ॥ १८४. जहाँ प्रत्येक चरण में आरंभ क्रमशः रगण, हस्त (सगण), काहल (लघु), ताल (गुरु लघु रूप त्रिकल ) देना चाहिए, मध्य में शब्द (लघु), हार (गुरु) दो बार पड़े अंत में दो काहल (लघु) एक हार (गुरु), तब फिर सुंदर शंख (लघु) तथा कंकण (गुरु) हों, -नागराज कहते हैं, हे सुंदरि, यह मन को मोहित करने वाला चर्चरी छंद है । (चर्चरी :- ऽ।|||SISISIS = १८ वर्ण ) । टि.- दिज्जहु -विधि प्रकार (ओप्टेटिव) का म. पु. ब. व. । पलंत - < पतन (अथवा पतन्तौ), वर्तमानकालिक कृदंत । सव्वलोअहि -< सर्वलोकैः; 'हि' करण ब. व. । । वुटि– बुद्धं, (कुछ टीकाकारों ने इसे 'चर्चरी' का विशेषण माना है :- 'बुद्धा' (स्त्रीलिंग), अन्य ने इसे 'विण्ण वि' का विशेषण माना है - 'बुद्ध' (पु. नपुं. रूप) । .. पूरहु - < पूरयत, आज्ञा म. पु. ब. व. । जहा, पाअ णेकर भंभणक्कइ हंससद्दसुसोहणा, थूरथोर थणग्ग णच्चइ मोतिदाम मणोहरा । वामदाहिण धारि धावइ तिक्खचक्खुकडक्खआ, __ काहु णाअर गेहमंडणि एहु सुंदरि पक्खिआ ॥ १८५ ॥ १८५. उदाहरण : (इसके) पैरों में नूपुर, हंस के शब्द के समान सुंदर शब्द कर रहे हैं, मनोहर मुक्ताहार स्थूल स्तनाग्र पर नाच रहा है (अथवा मुक्ताहार स्तनाग्र पर थोड़ा थोड़ा नाच रहा है ), इसके तीखे चक्षुःकटाक्ष बायें और दाहिने बाण की तरह दौड़ रहे हैं, किस सौभाग्यशाली पुरुष के घर को सुशोभित करने वाली यह सुंदरी दिखाई दे रही हैं ? टि. - भंभणक्कइ - < झणझणायते, ध्वन्यानुकृति (ओनोमेटोपोइक) क्रिया, वर्तमान प्र. पु. ए. व. । थूरथोर- (?) स्थूलेस्थूले; (२) स्तोकं स्तोकं । काहु - < कस्य । पूरिस - < पुरुषः, असावर्ण्य का उदाहरण, जहाँ परवर्ती 'उ' को 'इ' बना दिया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001797
Book TitleJain Sahityana Kavya Prakaro Swaroop ane Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavin Shah
PublisherShrutnidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages392
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Literature, & Kavya
File Size22 MB
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