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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना ५० यः पठेत् पुरतो भूत्वा तस्य विघ्नं प्रणश्यति ।।१०।। राजद्वारे तथोद्वेगे संग्रामे अरिसंकटे। अग्नि चौरनिपातेषु सर्वग्रहविनाशिनि ।।११।। य इमां जपते नित्यं शरीरे भयमागते। स्मृत्वा नारायणी देवी सर्वोपद्रवनाशिनी ।।१२।।
प्रस्तुत स्तोत्र इस तथ्य का प्रमाण है कि जैन साधना में योगिनियों की साधना का मुख्य प्रयोजन लौकिक जीवन में उपस्थित विघ्नों का उपशमन ही है।
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