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________________ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना जिनेन्द्राः खेचरा ज्ञेया, पूजनीया विधिक्रमात् । पुष्पैविलेपनैधूपैर्नैवेद्यै स्तुष्टिहेतवे।। पद्मप्रभस्य मार्तण्डश्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च । वासुपूज्यस्य भूपुत्रो, बुधश्चाष्टजिनेशिनां ।। विमलानन्तधर्मस्य, शांतिकुन्थनमेस्तथा। वर्द्धमानजिनेन्द्रस्य, पादपदमं बुधो नमेत् ।। ऋषभाजितसुपार्वाः साभिनन्दनशीतलो। सुमतिः सम्भवस्वामी, श्रेयांसेषु बृहस्पतिः ।। सुविधिः कथितः शुक्रे, सुव्रतश्च शनैश्चरे। नेमिनाथो भवेद्राहोः, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ।। जन्मलग्नं च राशिं च, यदि पीडयन्ति खेचराः। तदा संपूजयेद् धीमान्-खेचरान् सह तान् जिनान् ।। भद्रबाहुगुरुर्वाग्मी, पंचमः श्रुतकेवली। विद्याप्रसादतः पूर्वं ग्रहशांतिविधिः कृता।। यः पठेत् प्रातरुत्थाय, शुचिर्भूत्वा समाहितः। विपत्तितो भवेच्छांतिः क्षेमं तस्य पदे पदे ।। योगिनियाँ यद्यपि जैन देवमण्डल की चर्चा के प्रसंग में सीधे-सीधे कहीं भी योगिनियों का उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु ब्राह्मण तान्त्रिक साधना में योगिनियों की साधना की जो परम्परा रही है, वहीं से आगे चलकर यह जैन परम्परा में प्रविष्ट हुई हैं। लगभग दसवीं ग्यारहवीं शती से ब्राह्मण परम्परा के समान ही जैन परम्परा में भी चौंसठ योगिनियों के उल्लेख मिलने लगते हैं। साथ ही ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं कि जैनाचार्य इन योगिनियों की साधना कर उन्हें अपने वश में कर लेते थे और उनसे धर्म-प्रभावना के निमित्त इच्छित कार्य करवाते थे। नेमिचन्द्रसूरिविरचित आख्यानकमणिकोश (११वीं शती) में उल्लेख है कि राजानन्द के रोग को दूर करने के लिए योगिनीपूजा की गई थी। निर्वाणकलिका में (११वीं-१२वीं शती) में तो योगिनीस्तोत्र भी मिलता हैं। श्वेताम्बर पट्टावलियों में भी अनेक जैन आचार्यों द्वारा योगिनियों को सिद्ध करने के उल्लेख हैं। खरतरगच्छ पट्टावली में आचार्य जिनदत्त सूरि द्वारा योगिनियों को सिद्ध करने के स्पष्ट उल्लेख हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि चाहे योगिनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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