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________________ ३१ जैन देवकुल के विकास में हिन्दू तंत्र का अवदान उल्लेख हैं। निर्वाणकलिका (११-१२वीं शती), त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित (१२वीं शती), प्रवचनसारोद्धार (१३वीं शती) की सिद्धसेनसूरी की टीका, प्रतिष्ठासारोद्धार (१३वीं शती) आदि ग्रंथों में इन यक्ष-यक्षी युगलों और अनके प्रतिमा लक्षणों का भी निरूपण हुआ है। इन विविध ग्रंथों के आधार पर इन २४ यक्ष-यक्षी युगलों की जो सूची डॉ० मारुतिनंदन तिवारी ने तैयार की है उसे हम अविकल रूप से नीचे दे रहे हैं तीर्थंकरों के लांछन एवं यक्ष-यक्षिणियों की तालिका सं० जिन लांछन यक्ष यक्षी वृषभ गोमुख ऋषभनाथ या आदिनाथ २. अजितनाथ गज . महायक्ष ३. सम्भवनाथ अश्व त्रिमुख ४. अभिनन्दन कपि यक्षेश्वर (श्वे०,दि०), ईश्वर (श्वे०) तुम्बरु (श्वे०,दि०), चक्रेश्वरी (श्वे०,दि०). अप्रतिचक्रा (श्वे०) अजिता (श्वे०), रोहिणी (दि०) दुरितारी (श्वे०). प्रज्ञप्ति (दि०) कालिका (श्वे०), वजश्रृंखला (दि०) महाकाली (श्वे०). पुरुषदत्ता, नरदत्ता (दि०), सम्मोहिनी (श्वे०) अच्युता, मानसी (श्वे०), मनोवेगा (दि०) शान्ता (श्वे०). काली (दि०) ५. सुमतिनाथ क्रौंच ६. पद्मप्रभ पदम तुम्बर (दि०) कुसुम (श्वे०), पुष्प (दि०) स्वस्तिक (श्वे०, मातंग दि०). नंद्यावर्त ७. सुपार्श्वनाथ (दि०) ८. चन्द्रप्रभ मगर ६. सुविधिनाथ (श्वे०) पुष्पदंत (श्वे०,दि०) १०. शीतलनाथ शशि विजय (श्वे०). श्याम भृकुटि, ज्वाला (श्वे०). (दि०) ज्वालिनी (दि०) अजित (श्वे०,दि०). सुतारा (श्वे०), महाकाली (दि०) श्रीवत्स (श्वे०) ब्रह्म अशोक (श्वे०), मानवी स्वस्तिक (दि०) (दि०) जय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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