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________________ २६ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना . प्रज्ञप्ति-३, वजश्रृंखला-४, अंकुशा-१४, अप्रतिचक्रा-१, नरदत्ता-२०, काली-४, महाकाली-५,६, गौरी-११, गांधारी-१२, महाज्वाला-८, मानवी-१०, वैरोट्या-१३. अच्युता–६, मानसी-१५, महामानसी-१६ । ज्ञातव्य है कि इनमें से कुछ नाम श्वेताम्बर परम्परा सम्मत सूची में और कुछ नाम दिगम्बर परम्परा सम्मत सूची में पाये जाते हैं। इन १६ विद्याओं की सूची तिजएपहुत्थनविसति संहितासार (६३६ई०), स्तुतिचतुर्विंशांति, और बप्पभट्टसूरिकृत चतुर्विंशतिका में मिलता है। सोलह विद्याओं के अंकन का मुख्य रूप से श्वेताम्बर परम्परा में अधिक प्रचलन रहा है। इन का प्राचीनतम अंकन ओसिया (६वीं शती), कुम्भारिया (११ वीं शती), आबू (१२वीं शती), आबू लूणवसही (१३वीं शती) में मिलता है। दिगम्बर परम्परा में महाविद्याओं का अंकन मात्र खजुराहो (११वीं शती) में ही उपलब्ध है। इन महाविद्याओं के नामों एवं प्रतिमा लक्षणों की एक सूची डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी ने अपने ग्रंथ जैन प्रतिमा विज्ञान में दी है, वह निम्नानुसार है महाविद्या-मूर्तिविज्ञान-तालिका सं० महाविद्या वाहन भुजा-संख्या आयुध चार १ रोहिणी- (क) श्वे० गाय (ख) दि० पद्म चार शर, चाप, शंख, अक्षमाला शंख. (या शुल). पद्म, फल, कलश या - (वरदमुद्रा) २ प्रज्ञप्ति- (क) श्वे० मयूर चार वरदमुद्रा, शक्ति, मातुलिंग, शक्ति (निर्वाणकलिका); त्रिशूल, दण्ड. अभयमुद्रा, फल (मन्त्राधिराजकल्प) चक्र, खङ्ग, शंख, वरदमुद्रा (ख) दि० अश्व चार ३ वजश्रृंखला- (क) श्वे० पद्म चार वरदमुद्रा, दो हाथों में श्रृंखला, पद्म (या गदा) श्रृंखला, शंख, पद्म, फल (ख) दि० पद्म या गज चार ४ वजांकुशा- (क) श्वे० गज चार वरदमुद्रा, वज, फल, अंकुश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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