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________________ २५ जैन देयकुल के विकास में हिन्दू तंत्र का अवदान करते समय ऐन्द्रिक विषयों में अनुरक्त होने के कारण अपनी साधना से पतित हो जाते हैं और फलतः रुद्र के रूप में जन्म धारण करते हैं। यह निर्देश इस तथ्य का सूचक है कि तांत्रिक साधनाओं में चारित्रिक पतन की सम्भावना अधिक रहती है। जैन परम्परा में चौबीस यक्ष-यक्षियों के साथ-साथ चौबीस कामदेवों, नौ नारदों और ग्यारह रुद्रों के ये उल्लेख उस पर तंत्र परम्परा के प्रभाव के स्पष्ट सूचक हैं। तान्त्रिक प्रभाव के कारण ही निवृतिप्रधान जैनधर्म में विद्यादेवियों, यक्ष-यक्षियों, क्षेत्रपालों दिकपालों, नवग्रहों, कामदेवों, नारदों और रुद्रों को स्थान मिला। आगे हम इन जैन तान्त्रिक साधना में मान्य इन देव-देवियों पर थोड़े विस्तार से चर्चा करेंगे। महाविद्याएँ तंत्र साधना में विद्या और मंत्र दोनों के स्थान, महत्त्व और उनके अन्तर सम्बन्धी उल्लेख उपलब्ध होते हैं। विद्या और मंत्र का अंतर करते हुए यह कहा गया है कि जो स्त्री-देवता से अधिष्ठित हो वे विद्याएँ हैं और जो पुरुष-देवता से अधिष्ठित हो वे मंत्र हैं। अन्य प्रसंग में जैनाचार्यों का यह भी कहना है कि जो मात्र पाठ करने से सिद्ध हो उसे मंत्र कहते हैं और जो जप, पूजा आदि से सिद्ध हो उसे विद्या कहते हैं। प्राचीन स्तर के जैन ग्रंथों में विद्याओं के उल्लेख अवश्य मिलते हैं, किन्तु वे मात्र विशिष्ट प्रकार की ज्ञानात्मक या क्रियात्मक योग्यताएं, क्षमताएँ या शक्तियाँ हैं, जिनमें लिपिज्ञान से लेकर अन्तर्ध्यान होने तक की कलाएँ सम्मिलित हैं। किन्तु इन ग्रंथों में उन्हें पापश्रुत ही कहा गया है। जैनधर्म में विद्याएसोलह मानी गयी हैं- १. रोहिणी, २. प्रज्ञप्ति, ३. वज्रश्रृंखला, ४. वज्राकुंशी, ५. अप्रतिचक्रा, ६. नरदत्ता, ७. काली, ८. महाकाली, ६. गौरी, १०. गांधारी, ११. महाज्वाला, १२. मानवी, १३. वैरोट्या, १४. अच्युता, १५. मानसी और १६. महामानसी । तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं कि जहाँ तंत्र. परम्परा में मात्र निम्न १० महाविद्याएँ हैं-१.काली, २, तारा, ३. षोडशी, ४. भुवनेश्वरी, ५. भैरवी, ६. छिन्नमस्ता, ७. धूमावती, ८. बगलामुखी, ६. मातंगी और १०.कमला-वहाँ जैन परम्परा में उपरोक्त १६ महाविद्याओं को स्वीकार किया गया है। इन काली आदि एक दो नामों को छोड़कर शेष नामों में कोई संगति नहीं है। जैन परम्परा में इन १६ विद्याओं की इसी नाम वाली १६ अधिष्ठायिका देवियाँ भी हैं। आगे चलकर इन १६ महाविद्याओं को २४ तीर्थंकरों की २४ यक्षियों की तालिका में भी सम्मिलित कर लिया गया। निम्नलिखित विद्याएँ उनके नाम के आगे दर्शित संख्या वाले तीर्थंकरों की यक्षियां मानी गयी हैं- रोहिणी-२, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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