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________________ ३६० जैन धर्म का तंत्र साहित्य जी भाग - २ में प्रकाशित हैं। इसमें निम्न प्रकरण हैं १. प्रथम वाचना, २. द्वितीय वाचना, ३. ध्यान विधि, साधनाविधि, तृतीय वाचना (अक्षर स्थापना) सूरिमं गर्भित विद्याप्रस्थान पटविधि, मंत्रशुद्धि, तपोविधि, अधिष्ठायक स्तुति एवं सूरिमंत्र पदसंख्या विचार । सूरिमन्त्रकल्प (दुर्गपदविवरण) इसके कर्ता देवाचार्यगच्छीय सूर्यशिष्य हैं। इसमें लेखक ने अपना नाम स्पष्ट नहीं किया है। इस कृति में सूरिमंत्र के क्लिष्ट पदों को स्पष्ट किया गया है साथ ही साधना विधि का भी विवेचन किया गया है। यह कृति सूरिमंत्रकल्प द्वितीय भाग पृ० १६६ से २१२ तक में प्रकाशित है। लब्धिफलप्रकाशककल्प यह कृति भी किसी अज्ञात आचार्य द्वारा रचित है इसमें विभिन्नलब्धिपदों के जप से किस-किस रोग का उपशमन होता है एवं विशिष्ट प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसका विवरण दिया गया है। अंचलगच्छीयआम्नायसूरिमन्त्र यह एक संक्षिप्त कृति है। इसमें अंचलगच्छ के अनुसार सूरिमंत्र के अतिरिक्त वाचनाचार्य एवं उपाध्याय मंत्र भी संगृहीत है । यह कृति भी सूरिमंत्र कल्प भाग२ पृ० २१७ से २२० में प्रकाशित है। काम चाण्डालीकल्प यह कृति भी भैरवपद्मावती कल्प के प्रणेता आचार्य मल्लिषेण की रचना है। वर्धमानविद्याकल्प इस नाम की दो कृतियाँ हैं और दोनों ही आचार्य सिंहतिलक सू द्वारा ई० सन् १२६६ में रचित हैं । प्रथम कृति में आचार्य, वाचनाचार्य, उपाध्याय तथा आचार्यकल्प मुनि के साधना योग्य विद्याओं का उल्लेख है । यह कृति ७७ श्लोक परिमाण है । इसी नाम की दूसरी कृति में ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों से संबंधित चतुर्विंशति विद्याओं का उल्लेख है । विधिमार्गप्रपा यह कृति जिनप्रभा सूरि द्वारा ई०सन् १३०६ में रचित है। मूलतः कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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