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________________ ३५९ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना के प्रारम्भिक विधि-विधानों का उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् उसमें यह बताया गया है कि ध्यान पूर्वक ॐ ह्रीं नमः इस मूल मन्त्र का एक लक्ष जप किस प्रकार करना चाहिए इसमें मूल मन्त्र के साथ अलग-अलग पल्लवों को लगाकर शान्ति, पुष्टि, वशीकरण, विद्वेषण, उच्चाटन संबंधी तांत्रिक विधि-विधानों का निरूपण किया गया है। सूरिमन्त्रकल्प सूरिमन्त्रकल्प के नाम से अनेक कृतियां उपलब्ध होती हैं जिसका निर्देश हम पूर्व में कर चुके हैं। राजशेखरसूरि द्वारा रचित सूरिमंत्रकल्प ई०सन् १३५२ में निर्मित हुआ है। इस कल्प में निम्न दस वक्तव्य हैं १. सप्तदशमुद्रावर्णन, २. प्रथमपीठवक्तव्यता, ३. द्वितीयपीठ वक्तव्यता, ४. तृतीयपीठ वक्तव्यता, ५. चतुर्थपीठ वक्तव्यता, ६. पंचमपीठ वक्तव्यता, ७. पंचमपीठमय सम्पूर्ण सूरिमंत्र वक्तव्यता, ८. संक्षिप्त देवतावसर विधि वक्तव्यता ६. संक्षिप्त देवतावसरविधि वक्तव्यता और, १०. मन्त्रमहिमा वक्तव्यता। सूरिमुख्यमन्त्रकल्प यह कृति मेरुतुंगसूरि द्वारा ई०सन् १८८६ में निर्मित है, इसका संकेत हम पूर्व में सूरिमंत्रकल्प के अन्तर्गत कर चुके हैं। इस कृति में पंचपीठों और आम्नायों के आधार पर ऋषभविद्या, वर्धमान विद्या आदि चतुर्विंशति विद्याओं तथा लब्धिधरपदगर्भित सूरिमंत्र की साधना संबंधी विधि-विधान दिये गये हैं। इस प्रकार इसमें उपाध्यायविद्या, प्रवर्तक मन्त्र, स्थविरमन्त्र, गणाच्छेदक मन्त्र, वाचनाचार्य मन्त्र आदि का निर्देश है। इसके साथ ही प्रवर्तनी मन्त्र, पंडितमिश्र मंत्र, ऋषभविद्या, सूरिमन्त्रसाधनविधि (देवतावसर विधि के समान), आद्यपीठ साधन विधि, द्वितीय पीठ साधन विधि, तृतीय पीठ साधन विधि, चतुर्थ पीठ साधन विधि, पंचम पीठ साधन विधि, सूरिमंत्र स्मरण फल, सूरिमंत्र पटलेखन विधि ध्यान विधि और जप भेद आदि, आठ विद्याएं और उनका फल, सूरिमंत्र स्मरण विधि (संक्षिप्त), सूरिमंत्र अधिष्ठायक स्तुति, अक्षादि विचार, स्तम्भनादि अष्ट कर्मविचार चार, प्रकार के मंत्र, जाति मंत्र और स्मरण रीति मुद्रावर्णन, पंचाशत लब्धि वर्णन और विद्यामन्त्र लक्षण। सूरिमन्त्रकल्प किसी पूर्वाचार्य कृत सूरिमंत्रकल्पनामक कुछ एक कृतियां और उपलब्ध होती हैं। ये कृतियां सूरिमंत्रकल्पसमुच्चय, सम्पादक मुनि जम्बूविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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