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________________ ३५७ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना गद्य भाग है। इसमें सरस्वती की साधना विधि दी गई है। प्रतिष्ठातिलकम् __ इस ग्रन्थ की रचना दिगम्बर जैन आचार्य श्री नेमिचन्द्र देव ने १३वीं शताब्दी के आस पास की। इसमें १८ परिच्छेद हैं। ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकर्ता की प्रशस्ति, वास्तुबलिविधान आदि दिया गया है। इसका प्रकाशन दोसी सखाराम नेमचन्द्र, सोलापुर से हुआ है। यह ग्रंथ मूलतः पूजा एवं प्रतिष्ठाविधान से संबंधित है किन्तु प्रसंगानुकूल मन्त्र एवं यंत्र का भी इसमें निर्देश है। कुछ विशिष्ट यन्त्रों के नाम यहाँ दिये जा रहे हैं- महाशान्तिपूजायन्त्र, बृहच्छान्तिकयन्त्र, जलयन्त्र, महायागमण्डल यन्त्र, लघुशान्तिक यन्त्र, मृत्युंजययन्त्र, सिद्धचक्रयन्त्र, पीठयन्त्र, सारस्वतयन्त्र, निर्वाणकल्याणक यन्त्र, वश्ययन्त्र, शान्तियन्त्र, स्तम्भनयन्त्र, आसनपदवास्तुयन्त्र, जलाधिवासनयन्त्र, गन्धयन्त्र, अग्नित्रयहोमयन्त्र, अग्नित्रयद्वितीय प्रकार यन्त्र, अग्नित्रयहोममण्डपयन्त्र, उपपीठपदवास्तुयन्त्र, परमसामायिकपद वास्तुयन्त्र, उग्रपीठपदवास्तुयन्त्र, नवग्रहहोमकुण्डमण्डलयंत्र, स्थण्डिलपदवास्तुयन्त्र और मण्डुकपदवास्तुयन्त्र आदि। इसमें सर्वप्रथम जिनेन्द्र की वंदना के साथ इन्द्रनन्दि आदि पूर्व आचार्यों का निर्देश है जिनकी कृतियों के आधार पर यह ग्रन्थ रचा गया है। जिन प्रतिमा के साथ-साथ यक्ष-यक्षी एवं धातु से निर्मित यन्त्रों की प्रतिष्ठाविधि वर्णित है, साथ ही साथ सकलीकरण, दिग्बन्धन, आहान, स्थापन, सन्निधिकरण, पूजन और विसर्जन आदि विधि-विधान दिये गये हैं। जिन पूजा के अतिरिक्त श्रुतपूजा, गणधरपूजा, इन्द्रपूजा, यक्ष-यक्षी पूजा, दिग्पालपूजा आदि का भी वर्णन है। सूरिमन्त्रकल्प सूरिमन्त्रकल्प के नाम से अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। प्रमुख रूप से विभिन्न पीठ और आम्नायों के आधार पर ऋषभविद्या, वर्धमानविद्या आदि चतुर्विंशति विद्याओं तथा लब्धिधरपद गर्भित सूरिमन्त्र साधना संबंधी विधि विधान दिये गये हैं। इन सूरिमंत्रकल्पों में मेरुतुंगसूरिकृत सूरिमुख्यमन्त्रकल्प और उसकी दुर्गमपदविवरण नाम से देवाचार्यगच्छीय अज्ञातसूरिकृत टीका मिलती है। ग्रन्थ के सूरिमन्त्रकल्पसारोद्धार, सूरिमन्त्रविशेषाम्नाय आदि नाम भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त एक अज्ञात आचार्यकृत सूरिमन्त्रकल्प एवं मलधरगच्छीय राजशेखरसूरिकृत सूरिमन्त्रकल्प, देवसूरिकृत सूरिमन्त्रकल्प आदि ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। सूरिमंत्रकल्पसंदोह नामक ग्रन्थ में इन विभिन्न सूरिमंत्रकल्पों तथा उसके साथ में वर्द्धमानविद्या आदि का प्रकाशन हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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