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________________ ३५६ जैन धर्म का तंत्र साहित्य द्वितीय परिच्छेद में मन्त्रों एवं यन्त्रों की सिद्धि संबंधी विधि, हवन विधि, पार्श्वनाथ भगवान के यक्ष की साधना विधि आदि वर्णित है। तृतीय परिच्छेद में मन्त्रों एवं यन्त्रों की सिद्धि सम्बन्धी विधि, हवन विधि, भगवान पार्श्वनाथ के यक्ष की साधना विधि आदि का वर्णन है। चतुर्थ परिच्छेद में विभिन्न यन्त्रों का वर्णन, स्त्री आकर्षण, शत्रु विद्वेष, स्त्री सौभाग्य, क्रोधादि का स्तम्भन, ग्रहादि से रक्षण के उपाय वर्णित है। इसमें कौए के पंख, मृत्यु को प्राप्त प्राणियों की हड्डियों एवं रासभ रक्त से यन्त्र लेखन भी वर्णन है। पंचम परिच्छेद में वाणी, क्रोध, जल, अग्नि, तुला, सर्प, पक्षी, आदि के स्तम्भन की विधि निरूपित है, साथ ही वर्ताली यन्त्र भी उल्लिखित है। षष्ठ परिच्छेद में अभीष्ट स्त्री आकर्षण के छ: उपाय बतलाये गये हैं। सप्तम परिच्छेद में छः प्रकार के वशीकरण, दाह ज्वर शमन मन्त्र, निद्रा मन्त्र आदि की चर्चा है। पारस्परिक वैरभाव के विनाश और शत्रु के विनाश के उपाय बतलाये गये हैं। इसमें होम विधि भी बतलाई गयी है। अष्टम परिच्छेद में दर्पण निमित्त मन्त्र, कर्णपिशाचिनी मन्त्र तथा सुन्दरी देवी की सिद्धि की विधि वर्णित हैं। साथ ही गर्भ में पुत्र है या पुत्री आदि के बारे में बतलाया गया है। नवम परिच्छेद में मनुष्य एवं स्त्रियों को वश में करने के लिये औषधि एवं तिलक तैयार करने की विधि बतलायी गयी है। अदृश्य होने एवं गर्भमुक्ति के लिये कौन सी औषधि काम में लेनी चाहिए इसका वर्णन भी किया गया है। दशम परिच्छेद में गरुड़ाधिकार, आदि नागाकर्षण मन्त्र का उल्लेख है। साथ ही आठ प्रकार के नागों के बारे में भी बतलाया गया है। ज्वालामालिनीकल्प यह ग्रन्थ भैरवपद्मावतीकल्प के रचयिता आचार्य मल्लिषेण (लगभग ११वीं शती) की रचना है और भैरवपद्मावतीकल्प में प्रकाशित भी है। इसमें ज्वालामालिनी की साधना विधि वर्णित है। सरस्वतीकल्प यह भी आचार्य मल्लिषेण की रचना है। इसमें ७५ श्लोक और कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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