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________________ ३४१ जैनधर्म और तांत्रिक साधना धीरे-धीरे सीने के मध्य हाथों को आनन्द केन्द्र पर ले आएं। यह "अहँ" मुद्रा निष्पत्ति वीतरागता। अहँ मुद्रा से अर्हता उत्पन्न होती है। व्यक्ति में अनेक अर्हताएं हैं। वे सुप्त हैं। इसलिए व्यक्ति मूर्छा में डूबा रहता है। अर्ह मुद्रा से मूर्छा टूटती है। व्यक्ति का दृष्टिकोण प्रियता और अप्रियता से मुक्त होता है। यहीं से अनंत अर्हताओं का उदय होता है। शारीरिक दृष्टि से अंगुलियां, हथेलियां, मणिबंध, कोहनी और स्कंध स्वस्थ और शक्तिशाली बनते हैं। पेट, सीना, पसलिया, और मेरुदंड पर खिंचाव पड़ने से ये अंग स्वस्थ और सक्रिय होते है, जड़ता टूटती है। आलस्य दूर होता है। एड्रीनल और थाइमस ग्रंथियों के स्राव बदलने लगते हैं। शरीर में स्थित विजातीय द्रव्य विसर्जन तंत्र की ओर धकेल दिया जाता है। २. सिद्ध मुद्रा विधिः- सुखासन में स्थिरता पूर्वक ठहरें। सीने के मध्य दोनों हाथों को मिलाकर नमस्कार की स्थिति में आएं। 'ॐ हीं णमो सिद्धाणं' का उच्चारण करें। श्वास को भरते हुए हाथों को ऊपर ले जाएं। दोनों हथेलियों को खोल दें। बाहें कानों को स्पर्श करेंगी। हाथ सीधे रहेंगे। श्वास छोड़ते हुए हथेलियों को बंद करें और धीरे-धीरे सीने के मध्य आनन्द केन्द्र पर ले आएं। यह 'सिद्ध' मुद्रा है। निष्पत्ति सिद्ध पूर्ण स्वतंत्रता के प्रतीक है। स्वतंत्रता व्यक्ति की मौलिक इच्छा पूर्ण स्वतंत्रता है। वह बंधन में रहना नहीं चाहता। दोनों हथेलियों को खोलकर व्यक्ति अपनी पूर्ण स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति करता है। शारीरिक दृष्टि से वीतराग मुद्रा के लाभ इसमें भी होते हैं। साथ-साथ हथेलियों के खुलने से हथेलियों की मांसपेशियों पर विशेष दबाव पड़ता है। उससे मांसपेशियां पुष्ट और लचीली होती हैं। एड्रीनल और थाइमस ग्रंथियों के स्थान संतुलित होते हैं। अप्रमाद केन्द्रों पर विशेष प्रभाव पड़ने से जागरूकता बढ़ती है। ३. आचार्य मुद्रा विधिः- सुखासन में स्थिरतापूर्वक ठहरें। सीने के मध्य आनन्द केन्द्र पर दोनों हाथों को मिलाकर नमस्कार की स्थिति में आएं। 'ॐ हीं णमो आयरियाण' का उच्चारण करें। श्वास भरकर दोनों हथेलियों को खोलते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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