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___ ३४० तान्त्रिक साधना के विधि-विधान भैरवपद्मावतीकल्प में मल्लिषेण षट्कर्मों के सन्दर्भ में षट्मुद्राओं का उल्लेख हुआ है। वे लिखते हैं कि अकुंश मुद्रा आकर्षण के लिए है। सरोज मुद्रा वशीकरण के लिए है। बोध मुद्रा या ज्ञान मुद्रा शांति कर्म के लिए है। प्रवाल मुद्रा विद्वेषणकर्म के लिए है। शंख मुद्रा स्तम्भन करने के लिए है। वज मुद्रा मारण या प्रतिषेध के लिए है। प्रेक्षाध्यायः यौगिक क्रिया (पृष्ठ ५८) नामक पुस्तिका में मुनि किशन लाल जी ने नमस्कार मंत्र की निम्न पांच मुद्राओं का उल्लेख किया है। वे लिखते हैंनमस्कार मुद्राएं पाँच हैं१. अर्ह मुद्रा। २. सिद्ध मुद्रा। ३. आचार्य मुद्रा। ४. उपाध्याय मुद्रा। ५. मुनि मुद्रा।
अर्ह मुद्रा की निष्पत्ति है वीतरागता। सिद्ध मुद्रा की निष्पत्ति है पूर्ण स्वतत्रता । आचार्य मुद्रा की निष्पत्ति है श्रद्धा और समर्पण। उपाध्याय मुद्रा की निष्पत्ति है ज्ञान और मुनि मुद्रा की निष्पत्ति है समता और साधना। मुद्राओं की विधि
१. अहँ मुद्रा- आसन – सुखासन, पद्मासन, वज्रासन और समपादासन में से किसी एक का चुनाव करें। (आसनों के लिए प्रेक्षाध्याय आसन-प्राणायम पुस्तक देखें।) विधि
सुखासन के लिए बाएं पैर को दाई साथल के नीचे रखें। दाएं पैर के पंजे को बाएं पैर के नीचे रखें। रीढ़ और गर्दन सीधी रखें। सुखासन में स्थिरता पूर्वक ठहरें। सीने के मध्य दोनों हाथ मिलाकर नमस्कार की स्थिति में आएं। 'ॐ हीं णमों अरहंताण' का उच्चारण करें। श्वास को भरते हुए हाथों को ऊपर ले जाएं। उसी तरह बाहें ऊपर उठेंगी, बाहें कानों का स्पर्श करेंगी। हाथ ऊपर सीधे रहेंगे। श्वास छोड़ते हुए प्रणाम की मुद्रा में हाथों को मिलाए रखें। फिर
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