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३३४ तान्त्रिक साधना के विधि-विधान मुद्राओं के संदर्भ में एक विस्तृत विवरण विधिमार्गप्रपा के मुद्राविधि नाम ३७वें विधि में मिलता है। इसमें आह्वान संबंधी नौ मुद्राओं, पूजा संबंधी चार मुद्राओं षोडश विद्या संबंधी सोलह मुद्राओं, दिक्पाल संबंधी चार मुद्राओं, देवदर्शन संबंधी तीन मुद्राओं, प्रतिष्ठा विधि संबंधी अट्ठाइस मुद्राओं के उल्लेख उपलब्ध हैं। विधिमार्गप्रपा में जिन मुद्राओं का उल्लेख है उनके नाम इस प्रकार है१. नाराच मुद्रा, २. कुम्भ मुद्रा, ३. हृदय मुद्रा, ४. शिरो मुद्रा, ५. शिखर मुद्रा, ६. कवच मुद्रा, ७. क्षुर मुद्रा, ८. अस्त्र मुद्रा, ६. महामुद्रा, १०. धेनुमुद्रा, ११. आवाहनीय मुद्रा, १२. स्थापनी मुद्रा,१३. सन्निधानी मुद्रा, १४. निष्ठुरा मुद्रा या विसर्जन मुद्रा, १५. पाणियुग आवाहनीय मुद्रा, १६. पाणियुग स्थापन मुद्रा, १७. निरोध मुद्रा, १८. अवगुण्ठन मुद्रा, १६. गोवृष मुद्रा, २०.त्रासनी मुद्रा, २१. पूजा मुद्रा, २२. पाश मुद्रा, २३. अंकुश मुद्रा, २४. ध्वज मुद्रा, २५. वरद मुद्रा, २६. शंख मुद्रा, २७. शक्ति मुद्रा, २८. श्रृंखला मुद्रा, २६. वज मुद्रा, ३०. चक्र मुद्रा, ३१. पद्म मुद्रा, ३२. गदा मुद्रा, ३३. घण्टा मुद्रा, ३४. कमण्डल मुद्रा, ३५. परशु मुद्रा (द्वय), ३६. वृक्ष मुद्रा, ३७. सर्प मुद्रा, ३८. खङ्गमुद्रा, ३६. ज्वलन मुद्रा, ४०. श्रीमणि मुद्रा, ४१. दण्ड मुद्रा, ४२. पाश मुद्रा, ४३. शूल मुद्रा, ४४. संहार या विसर्जन मुद्रा, ४५. परमेष्ठि मुद्रा, ४६. पार्श्व मुद्रा, ४७. अंजलि मुद्रा, ४८. कपाट मुद्रा, ४६.जिन मुद्रा, ५०. सौभाग्य मुद्रा, ५१. सबीज सौभाग्य मुद्रा, ५२. योनि मुद्रा, ५३. गरुड़ मुद्रा, ५४. मुक्तासुक्ति मुद्रा, ५५. प्राणिपात मुद्रा, ५६. त्रिशिखा मुद्रा, ५७. श्रृंगार (मूंग) मुद्रा, ५८. योगिनी मुद्रा, ५६. क्षेत्रपाल मुद्रा, ६०. उमरुक मुद्रा, ६१. अभय मुद्रा, ६१. वरद मुद्रा, ६३. अक्षसूत्र मुद्रा ६४. बिम्ब मुद्रा, ६५. प्रवचन मुद्रा, ६६. मंगल मुद्रा, ६७. आसन मुद्रा, ६८. अंग मुद्रा, ६६. योग मुद्रा, ७०. पर्वत मुद्रा, ७१. विस्मय मुद्रा, ७१. नाद मुद्रा और ७३. बिन्दु मुद्रा।
मुद्राओं के संदर्भ में यह एक विस्तृत सूची है। जिनप्रभसूरि ने न केवल मुद्राओं के नामों का निर्देश किया है। अपितु यह भी बताया है कि किस प्रसंग में किस मुद्रा का उपयोग किया जाता है और उस मुद्रा की रचना किस प्रकार होती है। विस्तारभय से यहां हम ये मुद्राएं किस प्रकार बनायी जाती हैं। इसकी चर्चा हम नहीं कर रहे हैं।
मण्डल
तांत्रिक साधना में यंत्रों के साथ-साथ मण्डलों का भी उल्लेख पाया जाता है। मुद्रा और मंडल तांत्रिक साधना में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। जहां मुद्रा इष्ट देवता को प्रसन्न करने हेतु हाथ और अंगुलियों की सहायता
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