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________________ ३३३ जैनधर्म और तांत्रिक साधना मुद्रा होती है। ३३. बाएं हाथ से मुट्ठी बांधकर कनिष्ठिका को फैलाकर शेष अंगुलियों को __अंगूठे से दबाने से 'शंखमुद्रा होती है। ३४. एक दूसरे की ओर किए गये हाथों से वेणीबंध करके मध्यमा अंगुलियों को फैलाकर एवं मिलाकर शेष अंगुलियों से मुट्ठी बांधने पर 'शक्तिमुद्रा होती है। ३५. दोनों हाथ की तर्जनी और अंगूठे से घुमाव (कड़ी) बनाकर परस्पर एक दूसरे के अन्दर प्रवेश कराने से 'श्रृखंला मुद्रा' होती है। ३६. सिर के ऊपर दोनो हाथों से शिखराकार कली बनाई जाती है उसी को 'मन्दरमेरु मुद्रा' (पंचमेरु मुद्रा) कहते हैं। ३७. बाएं हाथ की मुट्ठी के ऊपर दाहिने हाथ की मुट्ठी रखकर शरीर के साथ कुछ ऊपर उठाने से 'गदामुद्रा' होती है। ३८. बाएं हाथ की अंगुलियों को नीचे की ओर घंटाकार फैलाकर दाहिने हाथ से मुट्ठी बांधकर, तर्जनी को ऊपर करके बाएं हाथ के नीचे लगाकर घंटे (को बजाने के) के समान चलाने से 'घण्टा मुद्रा' होती है। ३६. ऊपर उठे हुए पृष्ठ भाग वाले हाथों को जोड़कर दोनों कनिष्ठिकाओं को बाहर करके जोड़ने से 'परशुमुद्रा' होती हैं। ४१. हाथों को उठाकर उसकी अंगुलियों को कमल के समान फैलाने से 'वृक्षमुद्रा होती है। ४२. दाहिने हाथ की मिली हुई अंगुलियों को ऊपर उठाकर सर्पफण के समान कुछ मोड़ने से सर्पमुद्रा होती है। ४३. दाहिने हाथ से मुट्ठी बांधकर तर्जनी और मध्यमा को फैलाने से 'खड्गमुद्रा' होती है। ४४. हाथों में संपुट करके कमल के समान अंगुलियों को पद्म (कमल) के समान फैलाकर दोनों मध्यमा अंगुलियों को परस्पर मिलाकर उनके मूल में दोनों अंगूठे लागने से 'ज्वलन मुद्रा' होती है। ४५. मुट्ठी बांधे हुए दाहिने हाथ के मध्यमा, अंगुष्ठ और तर्जनी अंगुलियों को उनके मूल के क्रम से फैलाने से 'दण्डमुद्रा' होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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