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________________ ३३२ तान्त्रिक साधना के विधि-विधान १८. दोनों हाथों की बँधी हुई मुट्ठियों को मिलाकर अंगुष्ठद्वय को सम्मुख करने से 'हृदय मुद्रा' होती है। १६. उसी प्रकार दोनों मुट्ठियों को मिलाकर अंगूठे के आधे भाग को सिर पर रखने से 'शिरोमुद्रा होती है। २०. मुट्ठी बांधकर कनिष्ठिका और अंगूठे को फैलाने से शिखा मुद्रा होती है। २१. पूर्ववत मुट्ठी बांधकर तर्जनियों को फैलाने से 'कवच मुद्रा' होती है। २२. कनिष्ठिका को अंगूठे से दबाकर शेष अंगुलियों को फैलाने से 'क्षरमुद्रा' होती है। २३. दाहिने हाथ की मुट्ठी बांधकर तर्जनी और मध्यमा को फैलाने से 'अस्त्रमुद्रा होती है। २४. फैले हुये और मुख की तरफ आये हुए दोनों हाथों से पादांगुलि के तल से लेकर मस्तक तक स्पर्श करना 'महामुद्रा है। २५. दोनों हाथों से अंजलि बांधकर नाभिकामूल में अंगूठे के पर्व को लगाने से 'मावाहिनी मुद्रा' होती है। २६. अधोमुखी होने पर यही 'स्थापनी मुद्रा' कही जाती है। २७. बंधी हुई मुट्ठियों में ऊपर उठे हुए अंगूठों वाले दोनों हाथों से 'सन्निधानी मुद्रा होती है। २८. एक अंगूठा ऊपर उठाने से 'निष्ठुरा मुद्रा होती है। ये तीनों ही अवगाहनादि मुद्राएं हैं। २६. एक दूसरे से गुथी हुई अंगुलियों में कनिष्ठिका और अनामिका में मध्यमा और तर्जनी के फैलाने से और तर्जनी द्वारा वामहस्ततल चालन से त्रासनी (डरावनी) मुद्रा 'पूज्य मुद्रा होती है। ३०. अंगूठे और तर्जनी को मिलाकर शेष अंगुलियों को फैलाने से 'पाशमुद्रा' होती है। ३१. अपने हाथ की ऊपरी अंगुली को बाएं हाथ के मूल में तथा उसी अंगूठे को तिरछाकर तर्जनी चलाने से 'ध्वजमुद्रा' होती है। ३२. दाहिने हाथ को सीधा तानकर अंगुलियों को नीचे की ओर फैलाने से वर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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