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________________ ३२६ तान्त्रिक साधना के विधि-विधान श्रीपार्श्वनाथः सर्वाङ्गं, वर्धमानश्चिदात्मकम् ।। १७ ।। पृथिवी - जल- तेजस्क - वाय्वाकाशमयं जगत् । रक्षेदशेष- पापेभ्यो, वीतरागो निरञ्जनः ।। १८ ।। प्रस्तुत स्तोत्र में चौबीस तीर्थंकरों का शरीर के विभिन्न अङ्गों में न्यास करके उनसे रक्षा की अभ्यर्थना की गई है। मात्र इतना ही नहीं इसमें पार्श्व सम्पूर्ण अङ्गों की और वर्धमान महावीर से जल, थल, वायु, अग्नि और आकाश की रक्षा की भी प्रार्थना की गई है। तीर्थंकर या पञ्चपरमेष्ठि रक्षा करते है या नहीं, यह एक अलग प्रश्न है, जिसकी चर्चा इसी के अन्त में की गई है । सकलीकरण वस्तुतः न्यास और सकलीकरण समान ही है, किन्तु मन्त्रराजरहस्य (पृ० १०४) पञ्चनमस्कृतिदीपक एवं कुछ अन्य ग्रन्थों में न्यास के पश्चात् सकलीकरण करने का उल्लेख हुआ है और इन दोनों के पृथक-पृथक मन्त्र भी निर्दिष्ट हैं अतः यह मानना होगा कि ये दोनों क्रियाएँ भिन्न हैं । जहाँ तक मै समझ सका हूँ न्यास की पूर्णता ही सकलीकरण है। करन्यास, अङ्गन्यास आदि से आत्म रक्षा कर लेना ही सकलीकरण है । सिंहतिलकसूरि मन्त्रराजरहस्य ( पृ०१०४ ) में स्वयं लिखते है- एवं क्रमोत्क्रमः (मेण) पञ्चाङ्गरक्षा सकलीकरणम् अर्थात् क्रम एवं उत्क्रम से पञ्चाङ्गरक्षा ही सकलीकरण है । पा० व्ही काणे ने भी 'धर्मशास्त्र का इतिहास' भाग ५ ( पृ० ६८ ) में न्यास के अन्तर्गत ही सकलीकरण का उल्लेख किया है। उन्होंने न्यास और सकलीकरण को पृथक्-पृथक् नहीं माना है । वे लिखते हैं सकलीकृति में देवता की प्रतिमा के अंगों से अपने अंगों के न्यास का नाट्य करना होता है । (देवताङ्गे षटङ्गानां न्यास स्यात्सकलीकृतिः (शारदातिलक २३/११० ) यथार्थ में न्यास ही सकलीकरण है । मन्त्रराजरहस्य ( पृ० १०४) में सकलीकरण का निम्न मन्त्र दिया गया है क्षिप ॐ स्वाहा, हास्वा ॐ पक्षि- अध ऊर्ध्ववारान् त्रीन षड्वा क्षि पादयोः, 'प' नाभौ, 'ॐ' हृदये, 'स्वा' मुखे 'हा' ललाटे है न्यसेत् । यह न्यास क्रम और उत्क्रम (उलटेक्रम) दोनों से किया जाता है । किन्तु पञ्चनमस्कृतिदीपक में पञ्चपरमेष्ठि के द्वारा सकलीकरण का विधान मिलता है यथा ॐ नमो अरिहंताणं नाभौ, ॐ नमो सिद्धाणं हृदये, ॐ नमो आयरियाणं कण्ठे, ॐ नमो उवज्झायाणं मुखे ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं मस्तके सर्वाङ्गेषु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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