SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१५ जैनधर्म और तांत्रिक साधना षट् चक्र साधना के आधुनिक जैन संदर्भ जैन परम्परा में चक्रों की यह अवधारणा हठयोग और हिन्दू तन्त्रों से लगभग १३वीं शती में गृहीत होकर यथावत रूप में चलती रही। लगभग सत्ररहवीं शती में जैन योग प्रस्तोता एवं साधक आनन्दधनजी और यशोविजयजी ने भी इनका इसी रूप में संकेत किया है। किन्तु वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञ जी ने इन चक्रों को चैतन्य केन्द्र के रूप में व्याख्यायित करके प्राचीन एवं अर्वाचीन मान्यताओं का समन्वय किया है। चक्र का अर्थ है- चेतना केन्द्र अथवा शक्ति केन्द्र । हठयोग के आचार्यों ने चक्रों के छ: केन्द्र माने हैं। आयुर्वेद के आचार्यों ने शरीर में डेढ़ सौ चेतना के विशेष स्थान माने हैं, जबकि वर्तमान में प्रचलित एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर की चिकित्सा पद्धति में तो सात सौ से अधिक केन्द्र माने जाते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने भी प्रेक्षा ध्यान की पद्धति में तेरह चैतन्य-केन्द्र माने हैं। वे लिखते हैं योग के प्राचीन आचार्य जिन्हें चक्र कहते हैं, शरीरशास्त्री उसी को ग्लैन्ड्स (Gland) कहते हैं। जापान की बौद्ध पद्धति "जूडो" में उन्हें क्यूसोस (Kyushas) कहा जाता है जबकि चक्र, ग्लैन्ड्स या क्यूसोस तीनों ही के स्थान और आकार समान हैं, इनमें कोई विशेष अन्तर नहीं हैं। उन्होंने निम्न तुलनात्मक तालिका भी दी है M क्र०सं० जूडो क्यूसोस ग्लैण्ड्स योगचक्र टेन्डो (Tends) पिनिअल ग्लैण्ड (Pineal gland) सहस्रारचक्र उतो (Uto) पिट्यूटरी ग्लैण्ड (Pituitary gland) | आज्ञाचक्र हिचू (Hichu) थाराइड ग्लैण्ड (Thyroid gland) | विशुद्धिचक्र Putetes (Kyototsy) थाइमस ग्लैण्ड (Thymus gland) अनाहतचक्र सुइगेटसु (Suigetsy) एड्रेनल ग्लैण्ड (Adrenal gland) मणिपुरचक्र माइओजो (Myojo) / गोनाड्स (Gonads) स्वाधिष्ठानचक्र सुरिगिने (Tsurigane) | गोनाड्स (Gonads) मूलाधारचक्र उन्होंने अपनी प्रेक्षाध्यान पद्धति में उक्त क्यूसोस, ग्लैण्ड्स और चक्रों की व्याख्या चैतन्य केन्द्रों (Psychic centers) के रुप में की हैं। चैतन्य केन्द्रों के नाम, स्थान व अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के साथ वे किस प्रकार सम्बन्धित हैं, यह उनके द्वारा प्रस्तुत निम्न तालिका से स्पष्ट होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy