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________________ ३१६ ग्रन्थि कुण्डलिनी जागरण एवं षट्चक्रभेदन स्थान क्र०ा नाम से Lad सम्बन्ध o _*_ @_j शक्ति केन्द्र (Center of Energy) गोनाड्स पृष्ठ-रज्जु के नीचे के छोर पर स्वास्थ्य केन्द्र (Center of Health) गोनाड्स पेडू (नाभि से चार अंगुल नीचे) तैजस केन्द्र (Center Bio Elec- एड्रोनल, नाभि tricity) पेन्कियाज आनन्द केन्द्र (Center Bliss) थाइमस हृदय के पास बिल्कुल बीच में विशुिद्ध केन्द्र (Center of Purity) थाइराइड, कण्ठ के मध्य भाग में पैराथाइराइड ब्रह्म केन्द्र (Center ofCelibacy) रसनेन्द्रिय जिहान प्राण केन्द्र (Center of Vital Energy) घोणेन्द्रिय नासाग्र चाक्षुष (Center ofvision) केन्द्र चक्षुरिन्द्रिय आंखों के भीतर अप्रमाद केन्द्र (Center of Vigilance) श्रोतेन्द्रिय कानों के भीतर ज्योति केन्द्र (Center of Intuition) पाइनियल | भृकुटियों के मध्य में ज्योति केन्द्र (Center of Enligher) पाइनियल ललाट के मध्य मे शांति केन्द्र (Center of Peace) हाइपोथेलेमस मस्तिष्क का अग्रभाग १३. | ज्ञान केन्द्र (Center of Wisdom) बृहदमस्तिष्क | सिर के ऊपर का भाग (कार्टेक्स) | (चोटी का स्थान) चैतन्य केन्द्र जागृत करने की प्रक्रिया चैतन्य केन्द्रों को जागृत करने के सम्बन्ध में आचार्य महाप्रज्ञजी की मान्यता है कि चैतन्य केन्द्रों में जिस किसी भी केन्द्र को जाग्रत या सक्रिय करना हो, उसी पर मन को एकाग्र करने से वह केन्द्र सक्रिय हो जाता है। केन्द्रो की सक्रियता एवं जागरूकता व्यक्ति के लक्ष्य पर निर्भर करती है। उदाहरणार्थ यदि व्यक्ति पवित्रता को प्राप्त करना चाहे तो उसे बार-बार विशुद्धि केन्द्र (Center of Purity) पर अपने चित को एकाग्र करना चाहिए। इससे वासना के संस्कार मन्द होते हैं और पवित्रता आती है। चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा का प्रारम्भ शक्ति केन्द्र की प्रेक्षा से होता है और क्रमशः स्वास्थ्य केन्द्र, तैजम् केन्द्र.....और अंत में ज्ञान केन्द्र की प्रेक्षा की जाती है प्रत्येक केन्द्र पर चित्त को एकाग्र कर वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव किया जाता है। शुरू में प्रत्येक केन्द्रों पर २ से ३ मिनट तक ध्यान किया जाता है। चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नीचे के केन्द्रों पर ध्यान करने के बाद आनन्द केन्द्र और उससे ऊपर के केन्द्रों पर ध्यान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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