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कुण्डलिनी जागरण एवं षट्चक्रभेदन
शक्ति । तत्वका इन्द्रिय | लिङग |
चक्रों के नाम
तत्व
स्थान दल (मेरुदंडमें)
दलकी मातृकाएँ
तत्व और गुण
मण्डलका बीज वाहन || आकार
वाहन
मुलाधार गुदासमीप ४
ठान
स्वाधि- | लिक्के |६
| सामने मणिपुर । नाभिके १०
सामने अनाहत हृदयके |१२
सामने
व श ष स पृथ्वी संकली | पीत | चतुष्कोण |ल
करण गन्धवाह ब भ म । आप, आ- शुभ्र | अर्ध चन्द्र वं व र ल कुञ्चन रसवाडा डड ण त थ तेज, प्रसरण रक्त त्रिकोण र दधन पफ उष्णवाह कखगघल वायु, गति
धुन षट्कोण |वं चछजझत्र स्पर्शज्ञान ट अ आ अई आकाश |शुभ वर्तुल |....अं अः |60 (स) .
एरावत| बधा डाकिनी गन्ध पाद स्वयम्भू ऐरावत
कर्मेन्द्रिय मकर | विशु शाकिनी | रस हस्त गरुड
स्पर्शन्द्रिय मेष रुद्र नदी लाकिनी रूप
कर्मन्द्रिय काकिनी | स्पर्श |लिका राण
लिग
विशुद्धि
१६
सदाशिव साकिनी शब्द
श्रवण
कण्डके सामने प्रमध्य
शुभ हस्ति
|आज्ञा
२
शम्भु
हाकिनी | महत
हिरण्यमर्भ पाताल
सहसार
मूर्धन
१०००
आत्मा
कामेस्वरी कामनाथ
प्रणव
पादुका
चक्र का नाम
चक्र का स्थान
चक्र का |चक्र का मात्रिकाएं दल रंग
चक्र का तत्त्व
|चक्र की तत्त्व बीज
| चक्र की
देवी
चक्र यन्त्र चक्र का का आकार | मंत्र बीज
है
१ मूलाधार शस्वाधिष्ठान ३ मणिपूर
गुदामध्य लिंगमला६ नाभि १०
रक्त अरुण श्वेत
ladak
डाकिनी चतुष्कोण राकिनी चन्द्राकार एहीं क्ली। लाकिनी त्रिकोण
४ अनाहत
हृदय
१२
पीत
|व श ष स पृथ्वी ब भ म य र ल जल ड ढ ण त थ द अग्नि |ध न प फ क ख ग घ ङ च वायु छ ज झ ञ ट ठ अ आ इ ई उ ऊ आकाश ऋ ऋल लू ए ऐ ओ औ अं अः
।
काकिनी पट्कोण
५ विशुद्ध
श्वेत
शकिनी शून्यचक्र
(गोलाकार)
हाकिनी याकिनी लिंगाकार
रक्त
ह क्ष (१ळ)
महातत्व । ॐ
ह्रीं क्ली
रक्त
६ ललना घटिका |२० ७ आज्ञा त्रिकोण, भ्रूमध्य
कोदंड, खेचरी) ब्रह्मरन्ध्र शीर्ष १६ सोमकला, हंसनाद) ब्रह्मबिन्दु, सहस्रार |१००० ब्रह्मबिन्दु, सुषुम्णा
श्वेत
यह जानकारी अन्य ग्रन्थों के आधार पर दी गई है। तुलनात्मक अध्ययन से यह फलित होता है कि चक्र साधना सम्बन्धी जैन अवधारणा हिन्दूतन्त्र से आंशिक परिवर्तनों के साथ यथावत स्वीकार कर ली गई है।
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