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________________ ३०९ जैनधर्म और तांत्रिक साधना स्वाधिष्ठानचक्र स्वाधिष्ठान चक्र की स्थिति लिंग स्थान के सामने है। इसका कमल सिन्दूरी वर्ण का तथा छः दलों वाला है। दलों पर बँ, मैं, मैं, मैं, य, र, लँ बीजाक्षरों की स्थिति मानी गयी है। इस चक्र का यन्त्र जलतत्त्व का द्योतक, अर्धचन्द्राकार, और शुभ्र वर्ण है। उसका बीजाक्षर वँ है और बीज का वाहन मकर है। यन्त्र के देवता विष्णु और राकिनी हैं। इस चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से मूलाधार से ऊपर चढ़ती हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर स्वाधिष्ठानचक्र को जाग्रत कर देती है। फलतः साधक में सृजन, पोषण तथा विध्वंसन की सामर्थ्य आ जाती है। व्यक्ति में उत्साह और स्फूर्ति आती है, आलस्य, प्रमाद आदि नष्ट हो जाते हैं। वाक्सिद्धि हो जाने से उसकी जिह्वा पर सरस्वती का निवास रहता है और ग्रन्थरचना की शक्ति प्राप्त हो जाती है। स्वचेतना का आधार बिन्दु होने से इस चक्र को 'स्वाधिष्ठानचक्र' कहा जाता है। मणिपूरचक्र मणिपूरचक्र नाभिप्रदेश के सामने मेरुदण्ड के भीतर स्थित है। इसका कमल नीलवर्णवाले दस दलों का है और इन दलों पर क्रमशः हुँ, , , तँ, थें, द, धैं, नँ, पँ, फँ वर्णों की स्थिति मानी गयी है। इस चक्र का यन्त्र त्रिकोण है और अग्नितत्त्व का द्योतक हैं। इसके तीनों पार्श्व में द्वार के समान तीन 'स्वस्तिक' स्थित हैं। यन्त्र का रंग बालरविसदृश है। उसका बीजाक्षर है और बीज का वाहन मेष है यन्त्र के देवता रुद्र तथा लाकिनी हैं। इस चक्र पर ६ यान एकाग्र करने पर कुण्डलिनी ऊर्ध्वगामी होकर जब इसका भेद करती है तब साधक की समस्त मनो-दैहिक व्याधियाँ और मनोविकृतियाँ नष्ट हो जाती हैं, संकल्प शक्ति दृढ़ होती है और चेतना जाग्रत हो जाती है। उसकी समस्त गतिविधियाँ आत्म सजगता से अनुपूरित होती हैं, परमार्थ में रस आने लगता है। नाभिमूल को मणि संज्ञा भी दी गयी है। इसमें स्थित रहने के कारण ही इसको ‘मणिपूरचक्र कहते हैं। अनाहतचक्र यह चक्र हृदय प्रदेश के सामने स्थित है और अरुणवर्ण के द्वादश दलों से युक्त कमलरूप है। इसके द्वादश दलों पर कँ, ख, ग घु, उँ, च, छ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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