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२०५ जैन धर्म और तांत्रिक साधना यक्ष-यक्षिणियों का स्पष्ट निर्देश है किन्तु इन यन्त्रों में मुख्यतया तीर्थंकर और उनके शासन रक्षक यक्ष-यक्षिणियों से युद्ध में विजय, शत्रुओं के पराभव अथवा वांछित स्त्री के वशीकरण आदि के स्पष्ट उल्लेख हैं। इसलिए हमें यह तो स्वीकार करना होगा कि इन पर तान्त्रिक परम्परा के मारण, वशीकरण आदि षट्कर्मों का भी स्पष्ट प्रभाव है, जो जैन परम्परा की मूलभूत निवृत्तिमार्गी दृष्टि का विरोधी है। जैन परम्परा में इन यन्त्रों की रचना उस समय हुई जान पड़ती है जब उस पर तान्त्रिक परम्परा का व्यापक प्रभाव आ गया था। साथ ही इनके भाषायी स्वरूप पर अपभ्रंश का व्यापक प्रभाव भी यही सूचित करता है कि ये यन्त्र परवर्तीकाल में ही निर्मित हुए होंगे। पाठकों की जानकारी के लिए हम चतुर्विंशतितीर्थंकर अनाहतयन्त्र के कुछ चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं
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