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जैनधर्म और तांत्रिक साधना
मत्त-द्वि पेन्द -- म गराज-दवा न लाहिसंग्राम--वारिधि-महो दर-बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ।।४७।।
1 मनपिन्द्रमृगराजदवानलाहि
ग्रहामा बभागाश।
मग्रामया
भगदरम्पहरपपहा भवदर भण्डारी
कान।
वकस्तवमिममतिमानपीता
| भाप मारमा
ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो वड्ढमाणं । मंत्र -ॐ नमो ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्र
ठः ठः जः जः क्षां क्षीं क्ष क्षौं क्षः
यः रचाहा। प्रभाव-शत्र परास्त होता है और शस्त्रादि
के घाव शरीर में नहीं हो पाते।
नमोनाको
रहार भयहरयार भयहा
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धनात्यम्।
स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणै-र्निबद्धाम्, भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगता-मजस्रम्, तं मानतुङ्ग-मवशा समुपैति लक्ष्मीः ।।४८ ।।
स्तोत्रखजनय जिनेन्द्रगुण निगरानी
हीबारणेसालाना कमाईनान्त
मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वसाहणं । मंत्र -मतिमहावीरवड्ढमाणबुद्धिरिसीणं
ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः असि आ
उसा शौं शौं स्वाहा । प्रभाव-समस्त मनवांछित कामनाएं सिद्ध
होती हैं।
तमानतुभवशासमुपतिरुक्ष्मीटा
धिरासहव्यतीताजययारिया,
युधिरिसीमन्हाजीर
भणयामयताचस्वएतावाचनपुपाम्
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