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________________ २०३ जैनधर्म और तांत्रिक साधना मत्त-द्वि पेन्द -- म गराज-दवा न लाहिसंग्राम--वारिधि-महो दर-बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ।।४७।। 1 मनपिन्द्रमृगराजदवानलाहि ग्रहामा बभागाश। मग्रामया भगदरम्पहरपपहा भवदर भण्डारी कान। वकस्तवमिममतिमानपीता | भाप मारमा ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो वड्ढमाणं । मंत्र -ॐ नमो ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्र ठः ठः जः जः क्षां क्षीं क्ष क्षौं क्षः यः रचाहा। प्रभाव-शत्र परास्त होता है और शस्त्रादि के घाव शरीर में नहीं हो पाते। नमोनाको रहार भयहरयार भयहा INहारा Lar [ - ] ] Brok 2 En exh8 " . . INET eyon eurohitisfiree धनात्यम्। स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणै-र्निबद्धाम्, भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगता-मजस्रम्, तं मानतुङ्ग-मवशा समुपैति लक्ष्मीः ।।४८ ।। स्तोत्रखजनय जिनेन्द्रगुण निगरानी हीबारणेसालाना कमाईनान्त मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वसाहणं । मंत्र -मतिमहावीरवड्ढमाणबुद्धिरिसीणं ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः असि आ उसा शौं शौं स्वाहा । प्रभाव-समस्त मनवांछित कामनाएं सिद्ध होती हैं। तमानतुभवशासमुपतिरुक्ष्मीटा धिरासहव्यतीताजययारिया, युधिरिसीमन्हाजीर भणयामयताचस्वएतावाचनपुपाम् | interteningREimgnrA - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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