________________
२०१
जैनधर्म और तांत्रिक साधना
कुन्ताग्र-भिन्न-गजशोणित-वारिवाहवे गाव तार-तरणातु र-यो -भीमे । युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जे य-पक्षास्त्वत्-पद-पकज-वनाश्रयिणो लभन्ते ।।४३।।
यन्त्र
कुन्नाग्राभलगजशोणितयारिवाह कही ग्रामोपहरस्थाएनमोरके।
२
मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो महरमवाणं । मंत्र -ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी
जिनशासनसेवाकारिणी क्षद्रोपद्रवविनाशिनी धर्मशान्तिकारिणी इष्ट
सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा। प्रमाव-भय मिटता है और शान्ति प्राप्त
होती है।
| स्त्यत्पावपटूजवनाायेगोलभन्ते४३
धर्ममानिसारिणीनमालकासम्बाहा
श्वरीदेवीचक्रपारिएीजिनशावगावतारतरणातुरयाधभामा
MEReya -IBABLEyernE
अम्भो निधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्रपाठीन-पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ । रङ्गत्तरङ्ग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ।।४४।।
यात्र
-
मन्त्र
ग्रामोनिधीभित भीषएानकचक्र
कहाँबजारमोअमीमनमापकिनो ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो अमयसवीणं। मंत्र -ॐ नमो रावणाय विभीषणाय
कुम्भकरणाय लंकाधिपतये महाबलपराक्रमाय मनश्चिन्तितं कुरु कुरु
स्वाहा। प्रभाव-सब प्रकार की आपत्तियाँ हट जाती हैं।
IE
खामविहाय भवतास्मरपादयन्ति
मनाधिषित कुरुम्बा
| राबायविभीषणायकुकरणपाटीनपीठभयोल्याएबापानी।
TOPaanARINE.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org