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________________ २०० यंत्रोपासना और जैनधर्म रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ नीलम्, क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेण निरस्त-शङ्कस्त्वन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंसः ।।४१।।। 44 रकेभएसमदकोकिलकण्टनीस महामो वीर समीयांकनमो. मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो खीरसवीणं। । मंत्र -ॐ नमो श्रां श्रीं श्रृं श्रः जलदेवि ME कमले कमले पद्महृदनिवासिनी पद्मो परिसंस्थिते सिद्धि देहि मनोवांछित कुरु कुरु स्वाहा। Nepreneutine प्रभाव-सॉप का जहर उतर जाता है। - BI H AR स्वनामनागदपनी हदिम्स्यपुसः हिमनोपितफुलारुस्हर ही नमः कहीमारिवार मस्यौदेवकमल काधारतफाममुत्फएमापतन्तम्। - वल्गत्तुरङ्ग-गज-गर्जित-भीमनादमाजौ बलं बलवता-मपि भूपतीनाम् । उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखापविद्धम् , त्वत्-कीर्तनात्तम इवाशु भिदा-मुपैति ।।४२ ।। बन्गतुङ्गगजगमितभीमनादन हिचिईपाभोसप्पिसमानो मन्त्र ER.काही ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो सप्पिसवाणं। यन मा मंत्र -ॐ नमो नमिऊणविषप्रणाशनरोग मारा शोकदोपग्रहकप्पदुमच्चजाई सुहना . . . " गहण-सकलसुहदे ॐ नमः स्वाहा । प्रभाव-युद्ध-भय मिट जाता है। त्वत्कीर्तनासमडवाशु मियानुपति ४२ -वं अभिकलविषयविषा जाबलाउपतामापभूपतानाम् - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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