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________________ १९९ जैनधर्म और तांत्रिक साधना भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्ज्वल-शोणिताक्तमुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः । बद्ध क्रमः क्रम गतं हरिणाधिपो ऽपि, नाक्रामति क्रमयुगाचल-संश्रितं ते ।।३६ ।। यात्र मिन्ने मकुम्भगलपुज्ज्चसशोणितात. नीमणमोयननीएक ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं वचनबलीणं । कों को को को । मंत्र -ॐ नमो एषु दत्तेषु वर्द्धमान तव भयहरं वृत्ति वर्णा येषु मंत्राः पुनः हां की स्मर्तव्या अतोना परमंत्रनिवेदनाय HENDRA नमः स्वाहा । प्रभाव-गिह नि:शक्त हो जाता है और Lungarekur ane सर्प का भय नहीं रहता। Subedi मायनियमामास्वाहा नाकामतिकमयुमापन । नमाएपुवतवमानतब मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमि भागः। - कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वहिन-कल्पम्, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्स्फुलिङ्गम् विश्वं जिघत्सु-मिव सम्मुख-मापतन्तम्, त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्यशेषम् ।।४०।। कमान्तरपोजनापहिफम्पं महागमोकाश्य ली। -- त्वनामकीर्तम्जलंगायत्यशेषन ५० ----- श ऋद्धि --ॐ ह्रीं अर्ह णमो कायवलीणं । मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं अग्ने : उपशमं कुरु कुरु स्वाहा। प्रभाव-अग्नि का संकट/भय दूर होता है। केही श्रीकी नाही दावानल ज्वलितमुज्ज्वलमृत्तानमा समय श्र inthithivya Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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