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यंत्रोपासना और जैनधर्म
इत्थं यथा तव विभूति-रज्जिनेन्द्र! धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य । यादृक-प्रभा दिनकृतः प्र हतान्धकारा, तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकासिनोऽपि । ।३७ ।।
यन्त्र
2इत्ययथा तव विभूतिर भूजिनेन्द्र मन्त्र
निरमाणिमोसमोसहिएमाएको ऋद्धि --ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वोसहिपत्ताणं । मंत्र -ॐ नमो भगवते अप्रतिचक्रे ऐं क्लीं
उन ॐ ह्रीं मनोवांछितमिद्धय 16 नमो नमः । अप्रतिचक्रे ह्रीं ट: CHEE
रवाहा। प्रभाव-दृर्जन वशीभूत होते हैं और उनका HETHE P Ljan मह चन्द हो जाता है।
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দিবি ताहणता ग्रहमाणस्यविकाश
अपाम्कहाठठस्वाहा
भगवनेसप्रतिबकरेगी मापरेशमविधान तथा परस्य।
श्च्योतन् मदाविल-विलोल-कपोल मूलमत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कीपम् । ऐ रावताभ-मिभ-मुद्धत-मापतन्तम् , दृष्टवा भयं भवति नो भव-दाश्रितानाम् ।।३८ ।।
यन्त्र
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मोतन्मदाविलविलोलकपोलमूल
हमारमाहीमाभवान ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो मणबलीणं। मंत्र -ॐ नमो भगवते महानागकुलो
पिया चाटिनी कालदष्टमतकोपस्थापिनी
भारफोनमस्सा परमंत्रप्रणाशिनी देविदेवते ह्रीं नमो
नयानीमनमा नमः स्वाहा। प्रभाव-हाथी का मद उतरता है और समृद्धियाँ बढ़ती हैं।
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हाभयभयातनोपदाधितानाम३८ ।
सास्वाहा।
लेखारिनीधारमणपि। • मत्त धमाधमरनादविवृद्धकोपमा
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