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________________ १९८ यंत्रोपासना और जैनधर्म इत्थं यथा तव विभूति-रज्जिनेन्द्र! धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य । यादृक-प्रभा दिनकृतः प्र हतान्धकारा, तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकासिनोऽपि । ।३७ ।। यन्त्र 2इत्ययथा तव विभूतिर भूजिनेन्द्र मन्त्र निरमाणिमोसमोसहिएमाएको ऋद्धि --ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वोसहिपत्ताणं । मंत्र -ॐ नमो भगवते अप्रतिचक्रे ऐं क्लीं उन ॐ ह्रीं मनोवांछितमिद्धय 16 नमो नमः । अप्रतिचक्रे ह्रीं ट: CHEE रवाहा। प्रभाव-दृर्जन वशीभूत होते हैं और उनका HETHE P Ljan मह चन्द हो जाता है। S ain দিবি ताहणता ग्रहमाणस्यविकाश अपाम्कहाठठस्वाहा भगवनेसप्रतिबकरेगी मापरेशमविधान तथा परस्य। श्च्योतन् मदाविल-विलोल-कपोल मूलमत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कीपम् । ऐ रावताभ-मिभ-मुद्धत-मापतन्तम् , दृष्टवा भयं भवति नो भव-दाश्रितानाम् ।।३८ ।। यन्त्र E ll मोतन्मदाविलविलोलकपोलमूल हमारमाहीमाभवान ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो मणबलीणं। मंत्र -ॐ नमो भगवते महानागकुलो पिया चाटिनी कालदष्टमतकोपस्थापिनी भारफोनमस्सा परमंत्रप्रणाशिनी देविदेवते ह्रीं नमो नयानीमनमा नमः स्वाहा। प्रभाव-हाथी का मद उतरता है और समृद्धियाँ बढ़ती हैं। M um हाभयभयातनोपदाधितानाम३८ । सास्वाहा। लेखारिनीधारमणपि। • मत्त धमाधमरनादविवृद्धकोपमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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