SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९७ जैनधर्म और तांत्रिक साधना स्वर्गापवर्ग-गम-मार्ग-विमार्गणेष्टः, सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटु-स्त्रिलोक्याः । दिव्यध्वनि-र्भवति ते विशदार्थ-सर्वभाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः प्रयोज्यः ।।३५ ।। स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गोटा ही भईरामोजलोसहिपत्ताईनमोजय. मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो जल्लोसहिपत्ताणं । मंत्र -ॐ नमो जयविजयापराजितमहा-1E लक्ष्मी: अमृतवर्षिणी अमृतस्राविणी अमृतं भव भव वषट् स्वधा स्वाहा प्रभाव-चारी, मृगी, अकाल, राजभय आदि admaranelm an नष्ट हो जाते हैं। ajateyrentistory नमो गजर प्रवासायपरिणामणेःप्रयोज्या३५ | सरकार विजयनपराजितेमहालक्ष्मीअमृत सहर्मतत्वकथनेकपदुषिलोक्याः । -' उन्निद्र-हेमनव-पङ्कज-पुञ्जकान्तिपर्युल्लसन्-नख-मयूख-शिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र! धत्तः, पद्यानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति । ।३६ ।। - उन्निद्रहेमनवपाजपुञ्जकान्ती मन्त्र मईएमोधिप्पोसहिपचासनहीं ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो विप्पोसहिपत्ताणं मंत्र ... ह्रीं श्रीं कलिकुण्डदण्डस्वामिना जाग७ जागच्छ आत्ममंत्रान् । आकर्षय आकर्षय आत्ममंत्रान् रक्षा रक्ष परमंत्रान् छिन्द मम समीहितं ETE च कुरु कुरु स्वाहा। nirahee प्रभाव-सम्पत्ति का लाभ होना है। पमानितविदुषी परिकल्पयन्ति। परमपसमीहित्य श्रीकलिलावडम्बामियामसारमा | पर्युप्लसन्नत्वमयूरपशित्याभिराम AM - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy