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________________ १९६ यंत्रोपासना और जैनधर्म मन्दार-सुन्दर-नमे रु-सु पारिजातसन्तानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टि-रुद्धा। गन्धोद-विन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्-प्रपाता, दव्या दिवः पतति ते वचसां तति-र्वा ।।३३।। यन्त्र मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजानहींगाईएमोमोसहिपताए। मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो सव्वोसहिपत्ताणं । METIMAX मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू ध्यानसिद्धि| परमयोगीश्वराय नमो नमः स्वाहा । प्रभाव--सब तरह के ज्वर दूर होते हैं। रियादिपतनितेचचसा नतिर्याय नमोनमःसरहा। डीसा सन्तानकविकुसुमाकरहाटम्या थानमिति जीक का शुम्भत्-प्रभा-वलय-भूरि-विभा विभोस्ते, लोक-त्रये द्युतिमतां द्युति-माक्षिपन्ती। प्रोद्यद्-दिवाकर-निरन्तर-भूरि-संख्या दीप्त्या जयत्यपि निशा-मपि सोम-सौम्याम्।।३४।। यन्त्र - शुभप्रभावलयरिविमा विभोस्ले महोलि सहि पाए। सत्याजयन्यपिनिशामापसामताम्यामा नमोनमः स्वाहा बापा माया नमोडीयोकीएहों लावबजुलमतान्तमातिफ्ती। ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो खिल्लोसहिपत्ताणं । मंत्र -ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ह यौं पद्मावत्यै नमो नमः स्वाहा। प्रभाव-गर्भ की संरक्षा होती है। Imrik n is. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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