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________________ १९५ छत्र-त्रयं तव विभाति शशाङ्ककान्तमुच्चैः स्थितं स्थगित- भानुकर - प्रतापम् । मुक्ताफल-प्रकर-जाल - विवृद्ध-शोभम्, प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् । । ३१ ।। मन्त्र ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं नमो घोरगुणपरक्कमाण मंत्र – ॐ उवसग्गहरं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं विसहर विसणिर्णासिणं मंगलकल्लाणावासं ॐ ह्रीं नमः स्वाहा । प्रभाव - राज्य-मान्यता मिलती है और सर्वत्र सम्मान प्राप्त होता है । मन्त्र ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो घोरबंभचारिणं । मंत्र ॐ नमो ह्रां ह्रीं ह्रां ह्रः सर्वदोषनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव - संग्रहणी रोग तथा उदर की अन्य पीड़ाएँ दूर होती हैं । Jain Education International परमेश्वरत्वम् ३१ गम्भीर-तार - रव - पूरित - दिग्विभागस्त्रैलोक्य-लोक-शुभ - सङ्गम-भूति - दक्षः । सद्- धर्मराज - जय घोषण-घोषक सन् खेदुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी । । ३२ ।। प्रख्यापयत्रिजगतः जैनधर्म और तांत्रिक साधना वासंतुन्ही नमः स्वाहा। छत्रत्रयंतयविभाति शशाङ्क मोहपरमानुस Juted रमेषुभिर्ध्वनतिने यशसः मवादी ३२ सर्गसि नियूर्जिमांधांकुरु स्वाहा यन्त्र For Private & Personal Use Only क्रौंन्हीं لسابع وشم यन्त्र गम्भीरतारस्वपूरित दिग्विभाग रामोघोरब 我 हीं न्हीं हीं हीं न्हीं मैं सौं स सें कान्तः 传媒 महरासं वदामिकम्मघात मुचैः स्थित स्थगित भानुकर प्रतापम्. मैलोक्यलोक शुभ संगमभूतिदश नमोहन्तीह सर्वदोष www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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