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________________ १९४ यंत्रोपासना और जैनधर्म सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद्-विलसदंशु-लता-वितानम्, तुङ्गोदयाद्रि-शिरसीव सहस्ररश्मेः । ।२६ ।। सिंहासनेमणिमयूरवशिस्वाचिचिवे महामोधोरतवापरामशामिका अमाईनक ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरगुणाणं । मंत्र -ॐ नमो अ? म? क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रान् स्तम्भय रक्षां कुरु कुरु गुड़गाटयाद्रिशिरसीवराहस्त्ररश्मे २९ नाकपटुमचलवसिापनमाम्बाह' पाविसहरफुलिंगमनोबिनहरासस * विभ्राजनेतयवपुः कनकायदानन्' स्वाहा। प्रभाव-शत्रु का स्तम्भन होता है। Hanipirinewhdmypruine my.net कुन्दावदात-चलचामर-चारु-शोभम्, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम् । उद्यच्छशाक्ङ-शुचि-निर्झर-वारिधारमुच्चै-स्तटं-सुरगिरे-रिव शातकौम्भम् । ।३० ।। यन्त्र मन्त्र 8 कुन्दावदातचलचामरचारशोध ही आहेल गरोरेवशातकोभम्३० राए ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो घोरतवाणं। मंत्र -ॐ ह्रीं णमो णमिऊण पासं विसहर फुलिंगमंतो विसहर नाम रकारमंतो सर्वसिद्धिमीहे इह समरंताणमण्णे जागई कप्पदुमच्चं सर्वसिद्धि ॐ नमः स्वाहा। प्रभाव-नेत्र-पीड़ा दूर होती है। - विधाजतनववपुः कलधातकान्तम्। HIN JANING F मार-in IMILM - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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