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जैनधर्म और तांत्रिक साधना
को विस्मयोऽत्र यदि नामगुणै-रशेषै-- स्त्वं संश्रितो निरवकाश-तया मुनीश! दोषै-रुपात्त-विविधाश्रय-जात-गर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचि-दपीक्षितोऽसि ।।२७।।
मन्त्र
।
F कोविस्मयादिनामगुगरशेष
हीहएमालततयाएननमो
जे जज जन ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो दित्ततवाणं। | मंत्र -ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी
चक्रेणानुकूलं साधय साधय शत्रू
नुन्मूलयोन्मूलय स्वाहा। प्रभाव-शत्रु का उन्मुलन होता है, वह
Fe आराधक को कोई क्षति नहीं पहुँचा
SanmarARE पाता।
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स्वप्नान्तरेऽपिनकदाचिदपीक्षितीप्रस २७
उन्मूलय स्वाहा।
जंज
रकेश्वरीदेवीकधारिएगीचाएग स्यसश्रितानिरवकाशतया मुनाश!
उच्च-रशोक-तरु-संश्रित-मुन्मयूखमाभाति रूप-ममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत-किरण-मस्त-तमो-वितानम्, बिम्बं रवे-रिव पयोधर-पार्श्ववर्ति।।२८ ।।
यन्त्र
उभेरशोकतरुसभितमुन्मयूरव_ | उही अपमामहातबारा निमा
मन्त्र
सौ
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो महातवाणं । मंत्र -ॐ नमो भगवते जयविजय जम्भय
जम्भय मोहय मोहय सर्वसिद्धि
सम्पत्ति सौख्यं च कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव--मारे मनोरथ सिद्ध होते हैं।
विम्वचारवपयोधरपार्थचनि।।८
सपानमोरन्मकुरूकुरुस्वाहा।
भगवदेजयविजय अभय
मामातिरुपममलयतोनिनन्नम् ।
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