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________________ १८८ यंत्रोपासना और जैनधर्म नास्तं कदाचि-दुपयासि न राहु-गम्यः, स्पष्टी-करोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरो दर-निरुद्ध-महा-प्रभाव:, सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र! लोके ।।१७।। नास्तकदाचिदुपयासिनराहगम्या 1. हमनहामिजकुशमन्त्र नन मो ऋद्धि -ॐ ह्रीं णमो अट्टाङ्गमहानिमित्त कुसलाणं। मंत्र -ॐ णमो णमिऊण अट्ठ मट्ठ क्षुद्र-LE. विघट्टे क्षुद्रपीड़ां जठरपीड़ां भंजय भंजय सर्वपीड़ा निवारय निवारया सर्वरोगनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा। Litencentrasahitti 113:PLWY प्रभाव-सार रांग रूकते तथा दूर होते हैं । HI12pital | मृतिशायिमहिमासि मुनीन्द्रतोंक पीडासर्वरोगनिबारशंकुरु स्याहः । FREE FEगानुनमाभिरणाअमझे नावट . स्पाकरोषि सहसा युगपज्जगन्नि। नित्यो दयं दलित-मोह-महान्धकारम् , गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्प-कान्तिविद्योतयज्जग-दपूर्व-शशाङ्क-बिम्बम् ।।१८ || यन्त्र - निमोरयदलितमोहमहाधिकार IFRोकाबलान बोपनारपरपासस प 14 पता - मन्त्र वियातयज्जगदपूर्व शशाङ्क विम्बम १८ ननायनमकीनर 1611M मिजयकराम्दानीकोश्रीवर या भगवत गम्य नराहुबदनस्यनयारवानामा ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो विउयणढिपत्ताणं । मंत्र -ॐ नमो भगवते जय विजय मोहय | मोहय स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा । यथाहा। FLL 7VRIKE प्रभाव-शत्रुसैन्य स्तम्भित होती है। pahel Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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