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________________ १८६ यंत्रोपासना और जैनधर्म वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्र-हारि, निःशेष-निर्जित-जगत्-त्रितयोपमानम् । बिम्बं कलक-मलिनं क्व निशाकरस्य, यद्-वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ।।१३।। यन्त्र - वा कसुरनरोगनेवहारि भा मन्त्र ऋद्धि --ॐ ह्रीं अर्ह णमो ऋजमदीणं । मंत्र --ॐ ह्रीं श्रीं हं स: ह्रौं ह्रां ह्रीं द्रां द्रीं द्रौं द्र: मोहिनि सर्वजनवश्य कुरु कुरु स्वाहा। प्रभाव-चार चोरी नहीं कर पाते, मार्ग में। कोई भय नहीं रहता, लक्ष्मी प्राप्त होती है। यहासरे भवतिपाण्डुपलाशकल्पम्१३ निशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम् सम्पूर्ण-मण्डल-शशाङ्क-कला-कलापशुभ्रा गुणा-स्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति । ये संश्रिता-स्त्रिजगदीश्वर-नाथ-मेकम्, कस्तान् निवारयति संचरतो यथेष्टम् ।।१४ ।। सम्पूर्णमसशशाकसाफसाप मन्त्र ऋद्धि --ॐ ह्रीं अहं णमो विउलमदीणं। मंत्र :-ॐ नमो भगवत्यै गुणवत्यै महा मानस्यै स्वाहा। प्रभाव-लक्ष्मी प्राप्त होती है, आधि-व्याधि-LE शत्रु आदि का आतंक/भय दूर हो जाता है। कस्तानिवारयतिसचरतोयथेष्टम् १४ । महामानसीस्वार पिनुलभदी नर्मा | शुभ्रागुणानि भुवनतवलवयन्ति - WADA Walk animate Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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