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यंत्रोपासना और जैनधर्म
वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्र-हारि, निःशेष-निर्जित-जगत्-त्रितयोपमानम् । बिम्बं कलक-मलिनं क्व निशाकरस्य, यद्-वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ।।१३।।
यन्त्र
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वा कसुरनरोगनेवहारि
भा
मन्त्र ऋद्धि --ॐ ह्रीं अर्ह णमो ऋजमदीणं । मंत्र --ॐ ह्रीं श्रीं हं स: ह्रौं ह्रां ह्रीं
द्रां द्रीं द्रौं द्र: मोहिनि सर्वजनवश्य
कुरु कुरु स्वाहा। प्रभाव-चार चोरी नहीं कर पाते, मार्ग में।
कोई भय नहीं रहता, लक्ष्मी प्राप्त होती है।
यहासरे भवतिपाण्डुपलाशकल्पम्१३
निशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम्
सम्पूर्ण-मण्डल-शशाङ्क-कला-कलापशुभ्रा गुणा-स्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति । ये संश्रिता-स्त्रिजगदीश्वर-नाथ-मेकम्, कस्तान् निवारयति संचरतो यथेष्टम् ।।१४ ।।
सम्पूर्णमसशशाकसाफसाप
मन्त्र ऋद्धि --ॐ ह्रीं अहं णमो विउलमदीणं। मंत्र :-ॐ नमो भगवत्यै गुणवत्यै महा
मानस्यै स्वाहा। प्रभाव-लक्ष्मी प्राप्त होती है, आधि-व्याधि-LE
शत्रु आदि का आतंक/भय दूर हो जाता है।
कस्तानिवारयतिसचरतोयथेष्टम् १४ ।
महामानसीस्वार
पिनुलभदी नर्मा | शुभ्रागुणानि भुवनतवलवयन्ति
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