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________________ १६० जैन धर्म और तांत्रिक साधना जिनवल्लभसूरिकृत अजितशांतिस्तव, जिनप्रभसूरिकृत अजितशांतिस्तव, धनञ्जय कविकृत विषापहारस्तोत्र आदि उल्लेखनीय हैं। तांत्रिक साधना के क्षेत्र में नमस्कार मंत्र और तीर्थंकरों के अतिरिक्त गणधरों और लब्धिधरों के भी स्तोत्र बने हैं। ये स्तोत्र मुख्य रूप से ऋषिमंडल और सूरिमंत्र से सम्बन्धित हैं। इस स्तोत्रों में उद्योतनसूरि (६वीं शती) विरचित पवयणमंगलसारथयं, मानदेवसूरिकृत-सिरिसूरिमंतथुई, सिंहतिलकसूरिकृत सूरिमंत्रथुई पूर्णचन्द्रसूरिविरचित सिरिसूरिविद्यालब्धिस्तोत्र, मुनिसुंदरसूरिकृत सूरिमंत्रअधिष्ठायकस्तवत्रयी, धर्मघोषसूरिकृत इसिमंडलथोत्त, सिंहतिलकसूरि (तेरहवीं शती) कृत ऋषिमंडलस्तव–अज्ञातकृत गणधरवलय आदि अनेक स्तुति स्तोत्र निर्मित हुए हैं। जैन तांत्रिक साधना में पंचपरमेष्ठि तीर्थंकर और लब्धिधरों के साथ-साथ श्रुतदेवता के रूप में सरस्वती का भी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। सरस्वती से सम्बन्धित स्तोत्रों में बप्पभट्टि (६वीं शती) कृत सरस्वतीकल्प, मल्लिषेणसूरिकृत सरस्वतीमंत्रकल्प, साध्वी शिवार्याकृत सिद्धसारस्वतस्तोत्र, शुभचन्द्रकृत 'शारदास्तवन', जिनप्रभसूरिकृत 'शारदास्तव', आदि उल्लेखनीय तीर्थंकरों की शासनरक्षक देव-देवियों के रूप में चक्रेश्वरी, अम्बिका ज्वालामालिनि और पदमावती का भी जैनतांत्रिक साधना में महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है। फलतः इनसे संबंधित अनेक स्तोत्रों की रचनाएं जैन आचार्यों ने की। इनमें जिनदत्तसूरिकृत 'चक्रेश्वरीस्तोत्र', अज्ञातकृत 'चक्रेश्वरीअष्टक वस्तुपालकृत 'अम्बिकास्तोत्र', अज्ञातकृत अम्बिकास्तुति एवं 'अम्बिकाताटङ्क', अज्ञातकृत 'ज्वालामालिनीमंत्रस्तोत्र', श्रीधराचार्य विरचित पद्मावतीस्तोत्र, अज्ञातकृत पद्मावतीकवच एवं पद्मावतीस्तोत्र, इन्द्रनन्दिकृत' पद्मावतीपूजनम्', श्री चंदसूरिविरचित अद्भुतपद्मावतीकल्प, जिनप्रभसूरिविरचित 'पद्मावतीचतुष्पदि' अज्ञातकृत पद्मावती अष्टकस्तोत्र आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यक्षों एवं क्षेत्रपालों की स्तुति के रूप में भी कुछ स्तोत्र रचे गये, इनमें घण्टाकर्ण महावीर स्तोत्र प्रमुख है। ज्ञातव्य है घण्टाकर्णमहावीर को जैन देवमण्डल में बहुत बाद में स्थान मिला है। प्रस्तुतकृति में मेरा उद्देश्य पाठकों को मात्र यह बताना है कि जैनधर्म में तांत्रिक साधना का जो विकास हुआ उसमें जैनों का मौलिक अंश कितना है और अन्य परम्पराओं से उन्होंने क्या और कितना गृहीत किया है। प्रस्तुत कृति में उन विभिन्न स्तोत्रों, उनके सिद्धि के विधि-विधानों और फलों की चर्चा न करके मात्र पाठकों की जानकारी के लिए उन स्तोत्रों को परिशिष्ट के रूप में ग्रन्थ के अन्त में दिए गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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