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________________ १५९ स्तोत्रपाठ, नामजप एवं मन्त्रजप नवपदस्तुति का भी अपना महत्त्व है। इस स्तुति में नवपद की आराधना से विद्या, समृद्धि, लब्धि आदि की प्राप्ति की कामना की गयी है। तीर्थंकरों से सम्बन्धित तांत्रिक स्तोत्रों में मानंतुग विरचित भक्तामरस्तोत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही शाखाओं में इस स्तोत्र की मान्यता है। सामान्य जैन व्यक्ति का यह अटूट विश्वास है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से लौकिक विघ्न-बाधाएं, दूर हो जाती हैं। यह सम्पूर्ण स्तोत्र प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति के रूप में लिखा गया है। जैन भक्तों का विश्वास है कि इसके प्रत्येक श्लोक में विशिष्ट प्रकार के लौकिक कल्याण की शक्ति रही हुई है। फलस्वरूप न केवल इसके प्रत्येक श्लोक का मंत्र रूप में प्रयोग किया गया, अपितु इसके प्रत्येक श्लोक के आधार पर यंत्रों का भी विकास हुआ। इसी क्रम में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान कुमुदचन्द्र कृत माने जाने वाले 'कल्याणमंदिरस्तोत्र का है। यह स्तोत्र भी भक्तामरस्तोत्र के समान ही चमत्कारी शक्ति से युक्त माना जाता है। इस स्तोत्र की रचना २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति के रूप में हुई है। इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक का भी मन्त्र एवं यन्त्र के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन दोनों स्तोत्रों के मन्त्रों एवं यन्त्रों के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण 'जैन तन्त्रशास्त्र' नामक पुस्तक (संपा० पं० यतीन्द्र कुमार जैन शास्त्री, दीप पब्लिकेशन, आगरा १६८४) में पं० राजेश दीक्षित ने दिया है। इस ग्रन्थ में यह भी बताया गया है कि इन स्तोत्र के किस श्लोक से कौन से लौकिक कष्ट समाप्त होते हैं। यद्यपि ये दोनों स्तोत्र तांत्रिक साधना के प्रयोजन से निर्मित नहीं हुए फिर भी जैन तंत्र साधना में इनका उपयोग किया गया है। उवसग्गहर के पश्चात् पार्श्वनाथ की स्तुति से सम्बन्धित दूसरा महत्त्वपूर्ण स्तोत्र यही कल्याणमंदिर स्तोत्र है। जैन तांत्रिक साधना में पार्श्वनाथ का विशिष्ट स्थान रहा है। उनसे सम्बन्धित एक अन्य स्तोत्र मानतुंगकृत 'नमिऊण' स्तोत्र है, जो प्राकृत भाषा में है। यह स्तोत्र भक्तामर के कर्ता मानतुंग की ही रचना है यह सिद्ध करना तो कठिन है, किंतु भक्तामरस्तोत्र एवं नमिउण स्तोत्र में विषयगत बहुत कुछ समरूपता अवश्य प्रतीत होती है और इस आधार पर यह विश्वास किया जा सकता है कि यह रचना भी उन्हीं मानतुंग की है। तीर्थंकरों से सम्बन्धित तांत्रिक साधना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले अन्य स्तोत्रों में नन्दिषेणकृत अजितसांतिथय, मानदेवसूरिकृत तिजयपहुत्त स्तोत्र, अज्ञातकृत बृहद्शांतिस्तव, लघुशांतिस्तव. मुनिसुन्दरसूरिकृत संतिकरथवनं, अभयदेवसूरिकृत जयतिहुवनस्तोत्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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