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________________ १५२ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना नमस्कारमंत्र के इन पदों के इनमें सूचित विधि से जप करके होम करने पर ग्रहों की क्रूर दृष्टि दूर होकर तत्सम्बन्धी ग्रहपीड़ा समाप्त हो जाती है। जैन परम्परा में उपलब्ध मन्त्रों के इस अध्ययन से हम निम्न निष्कर्षों पर पहुंचते हैं सर्वप्रथम तो जैनों ने अपने नमस्कार महामन्त्र को ही मान्त्रिक स्वरूप प्रदान किया और इसी क्रम में न केवल नमस्कार मंत्र के पदों की संख्या में विकास हुआ अपितु प्रत्येक पद के साथ बीजाक्षर अर्थात् ॐ ऐं ह्रीं आदि योजित किए गये। इसप्रकार नमस्कार मंत्र को तन्त्र परम्परा में प्रचलित बीजाक्षरों से समन्वित करके जैन आचार्यों ने उसे तन्त्र-साधना की दृष्टि से मान्त्रिक स्वरूप प्रदान किया। यह स्पष्ट है कि नमस्कार मंत्र के साथ बीजाक्षरों को योजित करने की यह परम्परा तन्त्र से प्रभावित है। मात्र इतना ही नहीं इससे यह भी सिद्ध होता है कि जैन आचार्यों ने अन्य परम्पराओं में प्रचलित तान्त्रिक साधना का मात्र अन्धानुकरण नहीं किया है अपितु अनेक स्थितियों में उसे विवेकपूर्वक अपनी परम्परा से योजित भी किया है। इसी क्रम में हम यह भी पूर्व में निर्दिष्ट कर चुके हैं कि तन्त्रसाधना से प्रभावित होकर जैनों ने न केवल प्रणव (ॐ) को नमस्कार मंत्र से निष्पन्न बताया अपितु प्रत्येक पद के वर्ण आदि का निर्धारण भी किया और आत्मरक्षा, सकलीकरण अंग न्यास, ग्रह-नक्षत्र आदि की शांति के प्रसंग में भी नमस्कार मंत्र को योजित करने का प्रयत्न किया है। जैनाचार्यों ने नमस्कार मंत्र के विविध पदों के आधार पर विविध प्रयोजन सम्बन्धी मंन्त्रों की रचना भी की जिसकी चर्चा सिंहनन्दि विरचित ‘पञ्चनमस्कृति दीपिका' के नमस्कार सम्बन्धी मन्त्रों के प्रसंग में हम कर चुके हैं। नमस्कार मंत्र के पश्चात् जैन परम्परा में लब्धिधरों, ऋद्धिधरों के प्रति नमस्कार पूर्वक अनेक मंत्रों की रचना हुई । सर्व प्रथम तो इन पदों में सूरिमन्त्र या गणधरवलय की रचना हुई जिसमें इन लब्धिधारियों को नमस्कार किया गया है। प्रत्येक लब्धिधारी पद में नमस्कार पूर्वक बीजाक्षरों को योजित करके अनेक मंत्र बने और उन मंत्रों की साधनाविधि तथा उनसे होने वाले फलों या उपलब्धियों की भी चर्चा की गयी। इसके पश्चात् 'लोगस्स' और 'नमोत्थुणं' (शक्रस्तव) जो मूलतः प्राचीन स्तुति परक प्राकृत रचनाए हैं उनके आधार पर भी मंत्रों की रचनाएं हुई । इनमें इन स्तुतिपाठों के अंशों के साथ बीजाक्षरों आदि को योजित करके मंत्र बनाए गए हैं और इनकी साधना से भी विविध लौकिक उपलब्धियों की चर्चा की गयी। इन मन्त्रों के साथ-साथ जब जैन परम्परा में १६ महाविद्याओं, २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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