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________________ १५१ मंत्र साधना और जैनधर्म ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते नेमितीर्थंकराय सर्वाण्हयक्ष कुष्मांडीयक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ही ह: राहुमहाग्रह मम दुष्टाहरोगकष्टनिवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूँ फट् ।। - इस मन्त्र का १८००० जप करने पर राहुग्रह की शांति होती है। ६. केतुमहा ग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पार्श्वतीर्थंकराय धरणेद्रयक्ष पद्यावती यक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ही हः केतुमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु फट् ।। इस मन्त्र का ७००० जप करने से केतुग्रह के दुष्प्रभाव शांत होते हैं। प्रत्येक ग्रह के जितने जप लिखे हों उतना जप करके नवग्रह विधान करें, दशमांश होम करें तो ग्रह की शान्ति होती है, ऐसा विश्वास है। नमस्कारमंत्र से सम्बन्धित ग्रहशांति के मन्त्र पंचनमस्कृतिदीपक नामक ग्रन्थ में नमस्कार मन्त्र से सम्बन्धित ग्रहशांति के निम्न मन्त्र विधान दिये गये है 'ॐ णमो अरिहंताणं', जापस्त्वयुतसम्प्रमः। चन्द्रदोषं हरेदेतद्, लघौ होमो दशांशकः ।।१।। 'ॐ णमो सिद्धाणं' इत्येतज्जप्तं त्वयुतप्रमम्। सूर्यपीडां हरेदेतत्, क्रूरे होमो दशांशकः ।।२।। 'ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं' जप्तं त्वयुतसंप्रमम्। गुरुपीडां हरेदेतद्, दुःस्थिते तद्दशांशकम् ।।३।। ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं' जप्तं त्वयुतसंमितम् । बुधपीडां हरेदेतत्, क्रूरे होमो दशांशकः ।।४।। 'ॐ ह्रीं णमो लोप, सव्वसाहूणं' जप्तं त्वयुतसंप्रमम् । शनिपीडां हरेदेतत्, क्रूरे होमो दशांशकः ।।५।। 'ॐ ह्रीं णमो अरहताणं' जप्तं दशसहस्रकम् । शुक्रपीडां हरेदेतत्, क्रूरे होमो दशांशक: ।।६।। 'ॐ ह्री णमो सिद्धाणं', जप्तं दशसहस्रकम् । मङ्गलव्याधिहरणे, क्रूरे स्याच्च दशांशकः ।।७।। 'ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं' जापं दशसहस्रकम् । राहु-केतुद्वये ज्ञेयं, क्रूरे होमो दशांशकः ।।८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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