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________________ १५० जैनधर्म और तान्त्रिक साधना ३. मंगलमहाग्रहमन्त्र __ ॐ नमोऽर्हते भगवते वासुपूज्यतीर्थंकराय षण्मुखयक्ष गांधारीयक्षी सहिताय ॐ आँ क्रों ही हं: मंगलकुजमहाग्रह ममदुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वंशांति च कुरु कुरु हूं फट् ।। इस मंत्र का १०००० जप करने पर मंगल ग्रह का दुष्प्रभाव समाप्त होता ४. बुध महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते मल्लीतीर्थंकराय कुबरेयक्ष अपराजिता यक्षीसहिताय ॐ आँ क्रों ही हृ: बुधमहाग्रह मम दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ।। ५. गुरू महाग्रह मन्त्र ॐ नमोर्हते भगवते श्रीमते वर्धमान तीर्थंकराय मातंगयक्ष सिद्धायिनीयक्षी सहिताय ॐ क्रों ही हं: गुरूमहाग्रह मम दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांति च कुरु कुरु हूं फट् ।। गुरुग्रह की शांति के लिये इस मन्त्र का १६००० जप करना चाहिए। ६. शुक्र महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽहो भगवते श्रीमते पुष्पदंत तीर्थंकराय अजितयक्ष महाकालीयक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ही हः शुक्रमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरू कुरू हूं फट् ।। इस मन्त्र का १६००० जप करने पर शुक्रग्रह का प्रकोप शांत हो जाता ७. शनि महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते मुनिसुब्रततीर्थंकराय बरुणयक्ष बहुरुपिणीयक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ही हः शनिमहाग्रह मम दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारण सर्व शांति च कुरू कुरू हूं फट् ।। इस मन्त्र का २३००० जप करने पर शनिग्रह की कुदृष्टि दूर होती है। ८. राहु महाग्रह मंत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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