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मंत्र साधना और जैनधर्म
महासुखाय स्यात्।
इति शक्रस्तवः
इस शक्रस्तव अथवा जिननाममन्त्र स्तोत्र के पढ़ने, जपने अथवा सुनने का महाप्रभाव बताया गया है। कहा गया है कि इस मन्त्र स्तोत्र का ग्यारह बार पाठ करने पर यह सर्वपापों का निवारण करता है तथा अष्टमहासिद्धि प्रदान करता है। इसका पाठ करने से भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव प्रसन्न होते हैं तथा समस्त व्याधियाँ विलीन हो जाती हैं। केवल इतना ही नहीं, अपितु सभी शत्रु और क्रूरजन उसके प्रति मित्रवत व्यवहार करने लगते हैं। यह जिननाममन्त्र स्तोत्र धर्म अर्थ, काम आदि सभी पुरुषार्थो की सिद्धि करता है। ग्रह शान्ति सम्बन्धी मन्त्रः
विभिन्न दुष्टग्रहों के कुप्रभाव को क्षीण करने के लिए जैन आचार्यों ने पंचपरमेष्ठि और तीर्थंकरो से सम्बन्धित निम्न लिखित मन्त्र निर्मित किये है
तीर्थंकरों से सम्बन्धित ग्रहशांति सम्बन्धी मंत्र १. रविमहाग्रहमन्त्र
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पद्यप्रभतीर्थंकराय कुसुलयक्ष मनोवेगा यक्षी सहितायॐ आँ क्रों की ऊ: आदित्यमहाग्रह (मम कुटुंबवर्गस्य)। दुष्टरोगकष्टनिवारणं कुरु कुरु, सर्वशांति कुरु, सर्वसमृद्धि। कुरु कुरु. इष्टसंपदा कुरु कुरु, अनिष्टनिरसनं कुरु कुरु, धनधान्यसमृद्धि कुरु कुरु काममांगल्योत्सवं कुरु कुरु हूं फट् । इस मंत्र का ७००० जप करने से के ग्रह का दुष्प्रभाव शांत होते हैं। २. सोममहाग्रहमन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते चंद्रप्रभतीर्थंकराय विजययक्षज्वालामालिनीयक्षी सहिताय ॐ आँ क्रों ही ही हः सोममहाग्रह मम दुष्टाहरोगकष्ट निवारणं सर्वशांति च कुरु कुरु फट् ।।
इस मंत्र का ११००० जप करने पर चन्द्रग्रह का प्रकोप शांत होता है।
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