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________________ xii शारीरिक साधना मार्ग से उच्चतर मार्ग की ओर बढ़ता है। इसमें मंत्रों और यंत्रों-दोनों का उपयोग होता है। यह भक्तिवादी और आत्मसमर्पणवादी है। यह मुख्यतः सगुण भक्ति का रूप है। यह प्रवृत्तिमार्गी है। इसकी साधना स्मशान, शव एवं श्यामापीठ में अधिक स्वीकृत है जबकि जैन अरण्यपीठ साधना में विश्वास करते हैं। इसके विपर्यास में, जैन मंत्र और यंत्र विद्या अध्यात्ममुखी ही अधिक है। उसमें लौकिक कामनाओं का समाहार कालप्रभाव से ही हुआ है। इसके लिये अनेक विद्वानों ने आश्चर्य भी प्रकट किया है। तथापि जैन विद्वानों ने इस समाहार की पुष्टि की है और कुंडलिनी के समान शब्द और भैरव-पद्मावती कल्प के समान यंत्र, तंत्र को सामान्य जन की मनोवैज्ञानिकता के संतोष एवं जैन पद्धति के समन्वयवादी दृष्टि के कारण परवर्ती प्रभाव के रूप में स्वीकार किया है। इसीलिये जैन मंत्रों में भी ऐहिक-कामना विशेष परक नौ प्रकार के मंत्र (सारिणी-१ क्रमांक ४,५ एवं १६, १७) समाहित हुए हैं। वस्तुतः मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह मानना चाहिये कि यदि मंत्रों से ऐहिक लक्ष्य पूर्ण हो सकते हैं तो वे परलौकिक लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायक होंगे। यह स्थूल से सूक्ष्म की ओर गमन की वैज्ञानिक प्रक्रिया भी है। वस्तुतः धर्म अध्यात्ममुखी होने के साथ-साथ वह ऐहिक जीवन को भी सुखमय बनाता है। मंत्र-तंत्र मानव के सुखवर्धन में सहायक होते हैं और आत्मिक सुख के भी प्रेरक होते हैं। यहां यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि जैन मंत्रों, यंत्रों और तंत्र के स्वरूप जैन सम्मत महापुरुषों एवं गुणों पर ही आधारित हैं, तंत्रातर के देवी-देवता इसमें बहुत कम स्थान पाते हैं। इस संबंध में यंत्रों के विषय में सूचनायें रोचक होंगी। जैन पद्धति में "यंत्र" संबंधी विवरण विश्व हिन्दी कोश-१८ में जैनेतर पद्धतियों में "यंत्र" संबंधी मान्यताओं का विशद् विवरण दिया है। इसके अनुसार यंत्र दो प्रकार के होते हैं- (१) धारण यंत्र (ताबीज आदि) (२) पूजा यंत्र। धारण यंत्रों में दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, श्रीराम, कृष्ण, काली, तारा, भैरव, शिव आदि १५ यंत्रों के नाम हैं जबकि पूजा यंत्रों में श्यामा पूजा, बालामुखी, नवग्रह और श्रीविद्या यंत्र समाहित हैं। वहाँ १०१ आयुर्वेदीय यंत्र और अनेक ज्योतिषीय यंत्र भी दिये गये हैं। पर ये तंत्रवाद में काम नहीं आते। तंत्रवाद में यंत्र को संस्कारित करने के बाद ही शक्तिपीठ एवं साधकतम माना जाता है। इनका भक्तिवादी विधि से पूजन-अर्चन करने पर लाभ मिलता है। इसके विपर्यास में, जैनों में सैद्धान्तिक रूप से धारण यंत्रों की मान्यता नहीं है। हाँ, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश-३ (पृष्ठ ३४७-६८) में ४८ प्रकार के पूजन यंत्रों के चित्र दिये गये हैं। इनमें सिद्धचक्र, ऋषिमंडल, कर्मदहन, णमोकारयंत्र, दशलक्षणधर्म, निर्वाण संपत्ति, मुत्युंजय, मोक्षमार्ग, रत्नत्रय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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